अध्याय 1 – थका हुआ आज (भाग 1)
बारिश की बूंदों का शोर, एयर-कंडीशनर की गुनगुनाहट, और की-बोर्ड के टक-टक की लय —
गुरुग्राम के इस कॉर्पोरेट जंगल में यही संगीत चलता रहता था।
दोपहर ढल चुकी थी, लेकिन अर्जुन वर्मा की आँखों में थकान के साये सुबह से ही गहरे हो चुके थे।
उसकी मेज़ पर रखी कॉफ़ी कब से ठंडी हो चुकी थी।
सामने मॉनिटर पर खुली एक्सेल शीट में अनगिनत नंबर ऐसे फैले थे, जैसे किसी ने ज़िंदगी की उलझनों को टेबल में कैद कर दिया हो।
लेकिन अर्जुन की नज़र बार-बार उस एक फोटो फ्रेम पर अटक जाती —
एक मुस्कान, जो वक्त के साथ पुरानी जरूर हो चुकी थी, लेकिन उसकी यादें ताज़ा थीं।
वो मुस्कान नेहा अरोड़ा की थी।
वो दिन याद आते थे, जब हर सुबह का पहला मैसेज उसी का होता था,
जब हर लंच ब्रेक उसकी हँसी से भर जाता था,
और जब कॉरिडोर में उसकी एक झलक, पूरे दिन की थकान मिटा देती थी।
लेकिन आज, इन सबके बीच एक लंबा फासला आ गया था —
वक़्त का फासला, हालात का फासला, और सबसे बड़ा… अहम का फासला।
ईमेल का प्रहार
एक पिंग… और अर्जुन की सोच टूटी।
स्क्रीन पर नया ईमेल चमका:
Subject: Sad News about Neha Arora
From: HR Department
कर्सर धीरे से क्लिक हुआ…
शब्द धीरे-धीरे उभरे… और अर्जुन की सांस रुक गई।
"पिछले हफ्ते, हमारे पूर्व सहयोगी नेहा अरोड़ा का एक सड़क हादसे में निधन हो गया…"
कुछ पंक्तियों के बाद, एक छोटा-सा “May her soul rest in peace” लिखा था।
उसके कानों में ऑफिस का शोर एकदम धीमा पड़ गया।
बारिश के बाहर टकराने की आवाज़, पास की सीट पर किसी की हँसी, प्रिंटर का घुर्र-घुर्र —
सब जैसे किसी दूर के कमरे में सुनाई दे रहे हों।
वो खाली-सा देखता रह गया…
उसके अंदर कुछ टूट रहा था, और उस टूटने की गूँज सिर्फ वही सुन पा रहा था।
रात की ओर
शाम ढलने लगी।
लोग घर जाने की तैयारी कर रहे थे।
फाइलें बंद हो रही थीं, बैग कंधों पर चढ़ रहे थे, और लिफ्ट के सामने छोटी-सी भीड़ लगने लगी थी।
लेकिन अर्जुन… वहीं बैठा था।
उसे न जाने क्या खींच रहा था, कि वह देर तक ऑफिस में ही रुका रहा।
शायद वह उस ईमेल से भागना नहीं चाहता था, या शायद… भागने का मन ही नहीं था।
जब बाकी लोग जा चुके, तो उसने बैग उठाया और अकेला लिफ्ट की ओर बढ़ा।
बारिश अब और तेज़ हो चुकी थी।
अध्याय 1 – थका हुआ आज (भाग 2)
लिफ्ट में फँसना
लिफ्ट के दरवाज़े बंद हुए।
नीचे उतरते समय अचानक बिजली चमकी —
एक तेज़ झटका… और लिफ्ट झटके से रुक गई।
अंधेरा, बस ऊपर से एक लाल इमरजेंसी लाइट की हल्की चमक।
अर्जुन का दिल तेज़ धड़कने लगा।
उसने इमरजेंसी बटन दबाया, लेकिन कोई जवाब नहीं आया।
उस ठहरे हुए पलों में, उसे अपनी धड़कन साफ़ सुनाई दे रही थी।
और तभी…
एक अजीब-सी ठंडक, जैसे कोई अदृश्य हवा उसके भीतर उतर गई हो।
उसकी पलकों पर बोझ उतरने लगा…
और वो बेहोशी में चला गया।
अध्याय 1 – थका हुआ आज (भाग 3)
अतीत का पहला दिन
जब उसने आँखें खोलीं…
उसके सामने वही ऑफिस था, लेकिन कुछ अलग।
डेस्क पर पुराने कंप्यूटर, सफेद ट्यूब लाइट की पीली-सी रोशनी, वॉलपेपर का अलग रंग,
और दीवार पर 2015 का कैलेंडर टंगा था।
उसका गला सूख गया।
वो धीरे-धीरे खड़ा हुआ… और तभी —
"अर्जुन, कॉफ़ी चलेगा?"
उसने मुड़कर देखा…
वो थी — नेहा।
बिलकुल वैसी ही जैसी दस साल पहले थी —
मुस्कुराती हुई, बालों का एक लट कान के पीछे सरकाते हुए, और हाथ में दो कप कॉफ़ी लिए।
अर्जुन के होंठ हिले, लेकिन आवाज़ नहीं निकली।
वो बस देखता रह गया —
उस मुस्कान को, जिसे उसने खो दिया था… और जिसे वक्त ने उसे दोबारा लौटा दी थी।
अध्याय 1 – थका हुआ आज (भाग 3 – विस्तारित)
नेहा की आवाज़ मानो किसी पुराने रेडियो पर बज रही हो,
जिसके तार सालों पहले कट गए थे… लेकिन आज किसी ने फिर से जोड़ दिए।
"अर्जुन, कॉफ़ी चलेगा?"
उसके स्वर में वही हल्की-सी चंचलता, वही अपनापन था।
अर्जुन कुछ क्षणों तक जड़ खड़ा रहा।
उसके भीतर जैसे यादों का तूफ़ान उठ चुका था —
दोपहर के ब्रेक में नेहा का बैग लेकर कैफ़ेटेरिया जाना,
बारिश के दिनों में एक ही छतरी के नीचे भीगते हुए हँसना,
और प्रोजेक्ट की डेडलाइन के वक्त रात-दो-रात जागकर साथ में काम करना।
लेकिन ये सब तो… दस साल पुरानी बातें थीं।
तो फिर… आज ये कैसे?
"अरे! सुन रहे हो कि नहीं?"
नेहा ने हल्के से हाथ हिलाया, जैसे उसकी तंद्रा तोड़ रही हो।
अर्जुन ने गला साफ़ किया, “हाँ… हाँ, चलेगा।”
नेहा मुस्कुराई और आगे बढ़ गई।
अर्जुन उसके पीछे-पीछे चला, लेकिन उसके कदम भारी थे।
उसका दिमाग जैसे हर चीज़ को स्कैन कर रहा था —
दीवारों का रंग, फर्नीचर का पुराना डिज़ाइन, और सहकर्मियों के चेहरे…
सब कुछ वैसा ही था, जैसा उसने तब देखा था।
कॉफ़ी मशीन के पास
कॉफ़ी मशीन के पास हमेशा की तरह छोटी-सी भीड़ थी।
राहुल अंकल, ऑफिस का चाय-पानी संभालने वाला, वहीं खड़ा था — वही सफेद बाल, वही मुस्कान, वही मीठी-सी बोली।
"आओ अर्जुन बाबू, आज तो मौसम भी मस्त है और कॉफ़ी भी।"
राहुल अंकल ने प्याला भरते हुए कहा।
अर्जुन की आँखें भर आईं।
उसे याद आया, राहुल अंकल का तीन साल पहले देहांत हो गया था…
और आज वह उसके सामने खड़े थे, ज़िंदा, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
"क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रहे हो?"
राहुल अंकल ने हँसते हुए पूछा।
अर्जुन ने बस सिर हिलाया, “कुछ नहीं अंकल… बस पुराने दिनों की याद आ गई।”
नेहा ने प्याला उठाया और शरारती अंदाज़ में कहा,
"पुराने दिनों की? अभी तो करियर शुरू हुआ है, बूढ़े क्यों लग रहे हो?"
अर्जुन हल्के से हँसा, लेकिन भीतर कहीं एक गहरी टीस उठी।
दफ़्तर का हलचल भरा माहौल
वापस डेस्क पर लौटते हुए उसने देखा —
हर तरफ़ वही लोग, जिनके चेहरे अब बस फोटो एलबम या सोशल मीडिया पोस्ट में दिखते थे।
रोहित मेहरा, उसका उस समय का सबसे अच्छा दोस्त,
विक्रम माथुर, सख्त लेकिन न्यायप्रिय मैनेजर,
और वो सारे जूनियर जो उस समय नए थे, लेकिन अब शायद कहीं और निकल गए होंगे।
हर चेहरा, हर आवाज़… मानो किसी फिल्म का रीप्ले हो।
दिमाग़ की हलचल
बैठते ही उसने मोबाइल उठाया।
स्क्रीन पर वही पुराना मॉडल —
ना कोई फेस लॉक, ना हाई-टेक ऐप्स।
नेटवर्क बार पर 3G लिखा हुआ था।
उसके हाथ काँप गए।
उसने तुरंत तारीख़ देखी —
7 जुलाई 2015।
उसकी सांस अटक गई।
“ये… सच है?” उसने खुद से फुसफुसाया।
उसके सामने नेहा बैठी थी, लैपटॉप खोलकर कुछ टाइप कर रही थी।
वो बीच-बीच में बालों को कान के पीछे करती, पानी पीती, और कभी स्क्रीन पर झुककर भौंहें चढ़ाती —
और अर्जुन बस उसे देखता रह जाता।
लंच टाइम
घड़ी में 1:30 बजे का समय हुआ, और सब उठने लगे।
नेहा ने हँसते हुए कहा,
"चलो, आज लंच मेरे साथ कैफ़ेटेरिया में। तुम्हें एक बात बतानी है।"
अर्जुन चुपचाप उसके साथ हो लिया।
कैफ़ेटेरिया का वही पुराना शोर, प्लेटों की खनक, और पराठे-राजमा की खुशबू हवा में थी।
बैठते ही नेहा ने कहा,
"अर्जुन, तुमने सुना? अगले हफ्ते हमें एक नया प्रोजेक्ट मिलने वाला है… और अगर हम इसे संभाल लें, तो प्रमोशन पक्का!"
अर्जुन ने सिर हिलाया, लेकिन उसका मन कहीं और था।
वो जानता था — यही वो प्रोजेक्ट है, जिसके बाद नेहा की ज़िंदगी में सब कुछ बदल गया था।
अंदर की कसम
लंच के बाद लौटते समय, अर्जुन ने मन में एक वादा किया —
"इस बार मैं कुछ नहीं होने दूँगा… इस बार मैं नेहा को बचाऊँगा।"
उसके भीतर डर भी था —
क्योंकि वो जानता था, समय से खेलना आसान नहीं।
लेकिन अगर किस्मत ने उसे ये मौका दिया है,
तो शायद… ये उसकी आखिरी वापसी है।
अध्याय 2 – पहला इम्तिहान
सुबह के नौ बजकर पैंतालीस मिनट हुए थे।
ऑफिस के फ़्लोर पर हलचल थी —
कहीं प्रिंटर की आवाज़, कहीं फ़ोन की घंटी, कहीं माउस क्लिक करने की लय।
अर्जुन अपनी सीट पर बैठा कॉफ़ी के घूँट ले रहा था,
लेकिन उसकी आँखें बार-बार स्क्रीन के नीचे कोने में जातीं —
जहाँ समय और तारीख़ साफ़ लिखे थे: 7 जुलाई 2015, मंगलवार।
"ये सपना नहीं है…"
उसने धीरे से खुद से कहा।
हर छोटी-सी चीज़, हर चेहरा, हर आवाज़… सब वही था जो उसने दस साल पहले देखा था।
मीटिंग का बुलावा
तभी इनबॉक्स में एक पॉप-अप चमका:
Subject: Project Phoenix – Kick-off Meeting
From: Vikram Mathur
Time: 10:00 AM | Conference Room 3
मेल पढ़ते ही उसके सीने में एक अजीब-सी हलचल हुई।
"फीनिक्स…"
यह नाम सुनते ही उसके सामने पुरानी यादें खुल गईं —
वो महीना जब सबकुछ बदला था, नेहा की दुनिया टूटी थी, और उसका खुद का मन भी।
कॉन्फ़्रेंस रूम की हलचल
10 बजे, वह मीटिंग रूम में पहुँचा।
कमरे में एसी की ठंडी हवा और प्रोजेक्टर की हल्की नीली रोशनी फैली थी।
टेबल के चारों ओर कुर्सियाँ भरी हुई थीं —
नेहा उसके बगल में, नोटपैड और पेन तैयार,
रोहित सामने आराम से बैठा, और विक्रम माथुर हेड सीट पर।
"गुड मॉर्निंग, टीम।"
विक्रम की आवाज़ गूंज उठी।
"हमारे पास एक गोल्डन चांस है — 'Project Phoenix'।
क्लाइंट हाई-प्रोफाइल है, और ये डील हमें अगले लेवल पर ले जा सकती है… लेकिन इसमें एक गलती भी हमें नीचे गिरा सकती है।"
प्रोजेक्टर पर स्लाइड बदली —
क्लाइंट का नाम, उनकी अपेक्षाएँ, और डेडलाइन: 45 दिन।
"इस प्रोजेक्ट का लीड… नेहा अरोड़ा होंगी," विक्रम ने घोषणा की।
कमरे में हल्की-सी फुसफुसाहट गूँजी।
कुछ चेहरे हैरान, कुछ जलन से भरे, और कुछ बस उत्सुक।
अर्जुन ने महसूस किया — रोहित के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान थी, लेकिन वो दोस्ताना नहीं थी… बल्कि किसी छिपे खेल का हिस्सा लग रही थी।
मीटिंग की बारीक बातें
नेहा ने आत्मविश्वास से बोला,
"थैंक यू सर, मैं पूरी कोशिश करूँगी कि हम डेडलाइन से पहले और क्वालिटी में डिलीवर करें।"
विक्रम ने आगे जोड़ा,
"नेहा, तुम्हें दो सब-टीम्स को मैनेज करना होगा — एक डेवलपमेंट और एक क्लाइंट कम्युनिकेशन।
अर्जुन, तुम डेवलपमेंट में सपोर्ट करोगे।
रोहित, तुम क्लाइंट साइड में रहोगे।"
अर्जुन जानता था — यही सेटअप पिछली बार विनाश का कारण बना था।
रोहित को क्लाइंट टीम में रखकर, उसे अंदर से डाटा लीक करने का मौका मिला था, जिसने प्रोजेक्ट को डुबो दिया था और नेहा को दोषी ठहरा दिया था।
मीटिंग के बाद – रोहित का इशारा
ब्रेक में, रोहित उसके पास आया।
"भाई, देख रहा है? नेहा अब लीड है… मज़ा आएगा।"
अर्जुन ने भौंहें चढ़ाईं,
"मज़ा? मतलब?"
रोहित ने मुस्कुराते हुए धीमे से कहा,
"अरे, लीड बनते ही पूरा प्रेशर उसी पर होगा। और अगर वो डेडलाइन मिस करे, तो… तू समझ ही गया।"
अर्जुन ने उसकी आँखों में देखा — वहाँ एक योजना थी, साफ़ और ठंडी।
पिछली बार वो इसे नज़रअंदाज़ कर चुका था।
इस बार नहीं।
नेहा से पहली निजी बातचीत
शाम को, सब जाने लगे तो अर्जुन ने नेहा को रुकने को कहा।
"देखो, मैं जानता हूँ ये प्रोजेक्ट आसान नहीं है… और सब तुम्हारे साथ नहीं होंगे।"
नेहा ने हल्के से मुस्कुराकर कहा,
"अर्जुन, तुम्हें हमेशा लगता है कि मैं किसी मुसीबत में हूँ। मैं हैंडल कर लूँगी।"
अर्जुन ने धीमे लेकिन दृढ़ स्वर में कहा,
"इस बार मैं तुम्हारे साथ हूँ, हर स्टेप पर।"
नेहा थोड़ी देर उसे देखती रही, फिर बस इतना बोली,
"थैंक यू।"
और चली गई।
पहला बदलाव – फाइलें बचाना
पिछली टाइमलाइन में, पहले ही हफ्ते में एक जरूरी क्लाइंट डॉक्युमेंट गायब हो गया था,
जिससे नेहा पर लापरवाही का आरोप लगा था।
अर्जुन को याद था कि वह डॉक्युमेंट उस समय सिस्टम से चोरी हुआ था।
इस बार उसने रात को रुककर,
सभी क्लाइंट फाइलों का बैकअप बनाकर एक सीक्रेट ड्राइव में सेव किया।
और साथ ही, सिस्टम पर एक हिडन ट्रैकिंग टूल इंस्टॉल कर दिया —
ताकि अगर कोई फाइल चोरी करे, तो तुरंत पता चल जाए।
जब उसने यह किया, तो उसके मन में एक सवाल गूंजा —
"क्या सच में मैं किअध्याय 3 – पहली चाल
सुबह के आठ बजे थे।
बारिश रात भर गिरती रही थी और अब भी हल्की-हल्की बूँदें खिड़की के शीशे पर गिर रही थीं।
ऑफिस जाने से पहले अर्जुन छत पर आ गया था —
वो छत, जहाँ से पूरे शहर का नज़ारा दिखता था, और जहाँ वह पहले भी कई बार अपनी उलझनों को देखता-सुलझाता रहा था।
नीचे सड़क पर लोग अपनी-अपनी रफ्तार में भाग रहे थे,
लेकिन अर्जुन की रफ्तार आज भीतर से अलग थी।
उसके पास मौका था — अतीत को बदलने का, नेहा को बचाने का, और शायद खुद को भी।
नेहा का फोन
फ़ोन की घंटी बजी —
स्क्रीन पर नाम चमक रहा था: Neha Arora।
"गुड मॉर्निंग अर्जुन… एक कॉफ़ी पीने चलोगे ऑफिस से पहले?"
उसकी आवाज़ में एक हल्की-सी थकान थी, जैसे रात को उसने ठीक से नींद नहीं ली।
अर्जुन ने बिना सोचे कहा,
"हाँ, पंद्रह मिनट में मिलता हूँ।"
कॉफ़ी टेबल पर मुलाक़ात
एक छोटे-से कैफ़े में दोनों आमने-सामने बैठे।
खिड़की से बाहर बारिश के कतरे काँच पर लकीरें खींच रहे थे,
और उन लकीरों के पीछे, सड़क धुंधली दिख रही थी — जैसे उनका अतीत।
नेहा ने धीरे से कहा,
"तुम कभी-कभी अजीब लगते हो अर्जुन… जैसे तुम मुझसे पहले से सब जान लेते हो।"
अर्जुन बस मुस्कुराया।
"शायद इसलिए कि मैं जानता हूँ… कौन सी बातें अनकही रह जाएँ, तो क्या खो जाता है।"
नेहा ने कॉफ़ी का एक घूँट लिया, फिर खामोशी से उसे देखा।
उसकी आँखों में कुछ था —
शायद भरोसा, शायद सवाल, शायद वो सब जो वक्त ने कभी कहा ही नहीं।
अर्जुन का दिल – कविता के रूप में
*"कुछ लम्हे होते हैं,
जिन्हें पकड़ लो तो किस्मत बदल जाती है,
जिन्हें छोड़ दो तो उम्रभर सिर्फ़ अफ़सोस रह जाता है।
मैं लम्हों को पकड़ना चाहता हूँ,
ताकि कल के आँसू आज की मुस्कान बन जाएँ,
और जो खो गया था…
वो लौट आए,
जैसे बारिश में भीगी कोई पुरानी चिट्ठी।"*
नेहा ने शायद कविता के शब्द नहीं सुने,
लेकिन उसने महसूस किया —
अर्जुन की आँखों में कोई वादा है, एक ऐसा वादा जो उसने कभी नहीं किया… लेकिन निभाने की ठान ली है।
पहली चाल – खुला खेल
ऑफिस में पहुँचते ही अर्जुन ने अपनी प्लानिंग शुरू कर दी।
कल रात पकड़े गए रिमोट लॉगिन के बारे में वो सीधे नेहा को बताना चाहता था,
ताकि इस बार पहला वार दुश्मन की जगह, उनकी तरफ़ से हो।
"नेहा, ये देखो," उसने अपने लैपटॉप पर लॉगिन टाइम और यूज़रनेम दिखाया।
"ये सबूत है कि कोई अंदर से फाइलें चुराने की कोशिश कर रहा है।"
नेहा हैरान रह गई।
"लेकिन… R.Mehta तो रोहित है!"
अर्जुन ने सिर हिलाया,
"हाँ, और अब हमें उसे रंगे हाथ पकड़ना है।"
ट्रैप सेट करना
अर्जुन ने जानबूझकर एक डमी फाइल तैयार की —
एक नकली डॉक्युमेंट जिसमें गलत डेटा था।
और उसे उसी जगह रखा जहाँ से पिछली बार असली फाइल चोरी हुई थी।
उसने बैकग्राउंड में कैमरा और सिस्टम ट्रैकर ऑन कर दिया।
"इस बार… खेल हमारे हाथ में होगा," उसने मन में कहा।
अध्याय का अंत – चौंकाने वाला मोड़
रात के 11 बजे सिस्टम ने अलर्ट दिया —
किसी ने फाइल ओपन की है।
अर्जुन स्क्रीन पर लॉग देख रहा था…
लेकिन अगली लाइन पढ़ते ही उसका चेहरा सख्त हो गया।
यूज़रनेम: N.Arora
अर्जुन की साँस अटक गई।
"ये… नेहा?"
स्मत को बदल सकता हूँ… या ये सिर्फ एक नया खेल शुरू करेगा?"
अध्याय का अंत – सस्पेंस
अगली सुबह, लॉग्स चेक करते हुए उसने देखा —
रात 2:15 बजे किसी ने रिमोट एक्सेस से सिस्टम में लॉगिन किया था।
यूज़र नेम… R.Mehta।
अर्जुन के होंठों पर एक ठंडी मुस्कान आई।
"तो खेल शुरू हो चुका है…"
अध्याय 3 – पहली चाल
सुबह के आठ बजे थे।
बारिश रात भर गिरती रही थी और अब भी हल्की-हल्की बूँदें खिड़की के शीशे पर गिर रही थीं।
ऑफिस जाने से पहले अर्जुन छत पर आ गया था —
वो छत, जहाँ से पूरे शहर का नज़ारा दिखता था, और जहाँ वह पहले भी कई बार अपनी उलझनों को देखता-सुलझाता रहा था।
नीचे सड़क पर लोग अपनी-अपनी रफ्तार में भाग रहे थे,
लेकिन अर्जुन की रफ्तार आज भीतर से अलग थी।
उसके पास मौका था — अतीत को बदलने का, नेहा को बचाने का, और शायद खुद को भी।
नेहा का फोन
फ़ोन की घंटी बजी —
स्क्रीन पर नाम चमक रहा था: Neha Arora।
"गुड मॉर्निंग अर्जुन… एक कॉफ़ी पीने चलोगे ऑफिस से पहले?"
उसकी आवाज़ में एक हल्की-सी थकान थी, जैसे रात को उसने ठीक से नींद नहीं ली।
अर्जुन ने बिना सोचे कहा,
"हाँ, पंद्रह मिनट में मिलता हूँ।"
कॉफ़ी टेबल पर मुलाक़ात
एक छोटे-से कैफ़े में दोनों आमने-सामने बैठे।
खिड़की से बाहर बारिश के कतरे काँच पर लकीरें खींच रहे थे,
और उन लकीरों के पीछे, सड़क धुंधली दिख रही थी — जैसे उनका अतीत।
नेहा ने धीरे से कहा,
"तुम कभी-कभी अजीब लगते हो अर्जुन… जैसे तुम मुझसे पहले से सब जान लेते हो।"
अर्जुन बस मुस्कुराया।
"शायद इसलिए कि मैं जानता हूँ… कौन सी बातें अनकही रह जाएँ, तो क्या खो जाता है।"
नेहा ने कॉफ़ी का एक घूँट लिया, फिर खामोशी से उसे देखा।
उसकी आँखों में कुछ था —
शायद भरोसा, शायद सवाल, शायद वो सब जो वक्त ने कभी कहा ही नहीं।
अर्जुन का दिल – कविता के रूप में
*"कुछ लम्हे होते हैं,
जिन्हें पकड़ लो तो किस्मत बदल जाती है,
जिन्हें छोड़ दो तो उम्रभर सिर्फ़ अफ़सोस रह जाता है।
मैं लम्हों को पकड़ना चाहता हूँ,
ताकि कल के आँसू आज की मुस्कान बन जाएँ,
और जो खो गया था…
वो लौट आए,
जैसे बारिश में भीगी कोई पुरानी चिट्ठी।"*
नेहा ने शायद कविता के शब्द नहीं सुने,
लेकिन उसने महसूस किया —
अर्जुन की आँखों में कोई वादा है, एक ऐसा वादा जो उसने कभी नहीं किया… लेकिन निभाने की ठान ली है।
पहली चाल – खुला खेल
ऑफिस में पहुँचते ही अर्जुन ने अपनी प्लानिंग शुरू कर दी।
कल रात पकड़े गए रिमोट लॉगिन के बारे में वो सीधे नेहा को बताना चाहता था,
ताकि इस बार पहला वार दुश्मन की जगह, उनकी तरफ़ से हो।
"नेहा, ये देखो," उसने अपने लैपटॉप पर लॉगिन टाइम और यूज़रनेम दिखाया।
"ये सबूत है कि कोई अंदर से फाइलें चुराने की कोशिश कर रहा है।"
नेहा हैरान रह गई।
"लेकिन… R.Mehta तो रोहित है!"
अर्जुन ने सिर हिलाया,
"हाँ, और अब हमें उसे रंगे हाथ पकड़ना है।"
ट्रैप सेट करना
अर्जुन ने जानबूझकर एक डमी फाइल तैयार की —
एक नकली डॉक्युमेंट जिसमें गलत डेटा था।
और उसे उसी जगह रखा जहाँ से पिछली बार असली फाइल चोरी हुई थी।
उसने बैकग्राउंड में कैमरा और सिस्टम ट्रैकर ऑन कर दिया।
"इस बार… खेल हमारे हाथ में होगा," उसने मन में कहा।
अध्याय का अंत – चौंकाने वाला मोड़
रात के 11 बजे सिस्टम ने अलर्ट दिया —
किसी ने फाइल ओपन की है।
अर्जुन स्क्रीन पर लॉग देख रहा था…
लेकिन अगली लाइन पढ़ते ही उसका चेहरा सख्त हो गया।
यूज़रनेम: N.Arora
अर्जुन की साँस अटक गई।
"ये… नेहा?"
अध्याय 4 – सच और झूठ
रात 11:15 बजे।
ऑफिस की ऊपरी मंज़िल पर सन्नाटा पसरा था।
एसी की हल्की गुनगुनाहट और दूर कॉरिडोर में सिक्योरिटी गार्ड के कदमों की आवाज़ के अलावा,
सारी इमारत जैसे नींद में डूबी थी।
बाहर बारिश हो रही थी — वो धीमी, ठंडी बारिश जो दिल के भीतर तक उतर जाती है।
काँच की बड़ी खिड़कियों पर बूंदें टकराकर लकीरों की तरह बह रही थीं,
और शहर की लाइटें उन लकीरों में टूटकर बिखर रही थीं।
अर्जुन अपनी सीट पर अकेला बैठा था।
लैपटॉप स्क्रीन पर एक नाम चमक रहा था — N.Arora।
वो नाम जिसे देखकर उसके दिल में कई सालों की यादें एक साथ लौट आती थीं।
लेकिन इस वक्त… उस नाम के साथ एक डर, एक शक भी जुड़ गया था।
उसकी उंगलियां कीबोर्ड के ऊपर ठहरी हुई थीं,
लेकिन मन में एक तूफ़ान था —
"क्या नेहा वाकई…?"
उसने हल्के से आंखें बंद कीं।
नेहा की हंसी, उसका काम के दौरान ध्यान देना,
कॉफी ब्रेक पर उसकी बातें — सब उसकी आँखों के सामने तैर गया।
वो लड़की उसके लिए सिर्फ़ एक ऑफिस कलीग नहीं थी…
वो उस हिस्से की तरह थी, जो अर्जुन के अधूरेपन को पूरा करती थी।
सुबह का सामना
अगली सुबह 9:30 बजे।
ऑफिस का कॉन्फ्रेंस रूम पीली धूप में नहा रहा था।
टेबल पर दो कप अदरक वाली चाय रखी थी,
जिससे भाप उठकर कमरे में एक हल्की-सी महक फैला रही थी।
नेहा धीरे-धीरे अंदर आई।
उसके चेहरे पर थकान थी — जैसे रातभर नींद ने उसका साथ नहीं दिया हो।
उसने कुर्सी खींचकर बैठते हुए सीधा पूछा,
"कुछ जरूरी बात थी?"
अर्जुन ने उसकी आंखों में देखा, और बिना घुमाए कहा,
"कल रात 11 बजे तुम्हारा लॉगिन सिस्टम में मिला। वो फाइल… तुमने खोली थी।"
नेहा के हाथ में पकड़ा पेन ठहर गया।
कुछ पल की चुप्पी के बाद उसने धीमे और दर्द भरे स्वर में कहा,
"तुम सोचते हो, मैं चोरी कर सकती हूँ?"
अर्जुन का चेहरा सख्त था।
"सोचना नहीं पड़ता… सबूत बोल रहे हैं।"
नेहा की आँखें भर आईं,
"अर्जुन, सबूत भी झूठ बोल सकते हैं… अगर किसी ने उन्हें बदल दिया हो।"
दिल बनाम दिमाग
कमरे में एक अजीब-सी खामोशी फैल गई।
बाहर बारिश की बूंदों की टप-टप और तेज़ हो गई थी।
अर्जुन के भीतर दो आवाज़ें लड़ रही थीं —
एक कह रही थी कि वो सच देखे, दूसरी कह रही थी कि वो उस पर भरोसा करे।
वो थोड़ा आगे झुककर बोला,
"नेहा, अगर तुम इसमें शामिल हो, तो ये सिर्फ़ डेटा चोरी नहीं… मेरे भरोसे की हत्या है।"
नेहा ने गहरी सांस ली। उसकी आवाज़ कांप रही थी,
"और अगर मैं निर्दोष हूँ, तो ये इल्ज़ाम… मेरे दिल की हत्या है।"
इन शब्दों के साथ उसकी आंखों से एक बूंद टपककर टेबल पर गिर गई।
अर्जुन ने वो बूंद देखी… लेकिन हाथ बढ़ाकर पोंछने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।
अतीत की एक झलक
अचानक अर्जुन को 3 साल पहले का वो दिन याद आ गया,
जब उसने पहली बार नेहा को रोते हुए देखा था।
ऑफिस की पार्किंग में, शाम को,
वो अकेली खड़ी थी, हाथ में एक कागज़ का लिफ़ाफ़ा।
उस दिन अर्जुन ने उससे पूछा था, "सब ठीक है?"
और उसने बस इतना कहा था, "कुछ सच… ऐसे होते हैं जिन्हें कोई नहीं समझ सकता।"
आज भी उसके चेहरे पर वैसा ही भाव था —
जैसे कोई अंदर से टूट रहा हो, लेकिन दिखाना नहीं चाहता।
नेहा का आखिरी वाक्य
नेहा ने धीरे से कुर्सी पीछे खिसकाई,
और उठते हुए बोली,
"अर्जुन, कभी-कभी जो सच दिखता है, वो सबसे बड़ा झूठ होता है… और जो झूठ लगता है, वो ही असली सच होता है।"
ये कहकर वो दरवाजे की तरफ़ बढ़ी।
अर्जुन चाहता था कि वो उसे रोक ले, कुछ कहे,
लेकिन उसके होंठ जैसे सिल गए थे।
सिस्टम में छुपा सच
नेहा के जाने के बाद, अर्जुन सीधा अपने डेस्क पर गया।
उसने सिस्टम लॉग्स खोले और इस बार रियल-टाइम सर्वर बैकअप चेक किया।
उसके माथे पर पसीना आ गया —
लॉगिन भले ही N.Arora के नाम से था,
लेकिन आईपी एड्रेस ऑफिस का नहीं था।
ये लोकेशन कंपनी के पुराने स्टोरेज रूम की थी,
जहां धूल खा रहा एक पुराना वर्कस्टेशन पड़ा था।
वो सिस्टम जिसे कई साल से किसी ने छुआ तक नहीं था।
"तो… ये कोई और है, जो नेहा का नाम इस्तेमाल कर रहा है।"
अर्जुन ने धीमे से कहा,
लेकिन उसके दिल में ये राहत नहीं थी… बल्कि डर और बढ़ गया था।
खतरे का संदेश
जैसे ही उसने सोचा कि वो वहां जाकर चेक करेगा,
उसके फोन पर एक मैसेज आया —
एक अनजान नंबर से।
"सही चाल चलो, अर्जुन… वरना अगली बारी उसकी होगी।"
मैसेज के साथ एक फोटो थी —
नेहा की, कल रात, उसी पुरानी गली में खड़ी…
जहां से वो हादसा दस साल पहले शुरू हुआ था।
अर्जुन का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
उसकी उंगलियां ठंडी पड़ गईं।
अब उसे पता था — ये खेल सिर्फ़ डेटा का नहीं…
ये किसी की जिंदगी और मौत का खेल था।
अध्याय 5 – पुरानी गली
रात 12:05 बजे।
शहर की सड़कों पर हल्की-हल्की बारिश की बूंदें गिर रही थीं।
नारंगी स्ट्रीट लाइट की रोशनी में वो बूंदें ऐसे चमक रही थीं,
जैसे आसमान के टूटे हुए टुकड़े जमीन पर गिर रहे हों।
अर्जुन की कार धीरे-धीरे शहर के पुराने हिस्से की तरफ़ बढ़ रही थी।
ये वो इलाका था जहां अब शायद ही कोई आता था।
सड़क किनारे के मकानों की दीवारें सीलन से काली हो चुकी थीं,
और लोहे के गेट पर जंग ने अपना कब्जा जमा लिया था।
गली के बाहर एक टूटा हुआ बोर्ड लटका था,
जिस पर कभी सुनहरे अक्षरों में “शांति नगर” लिखा था,
अब बस धुंधला सा “शांति…” बचा था।
गली में कदम
अर्जुन ने कार वहीं रोकी और पैदल चलना शुरू किया।
गली में घुसते ही उसके जूतों के नीचे पानी भरे गड्ढों में छींटे उछलने लगे।
हवा में नमी और पुराने लोहे की गंध घुली हुई थी।
दूर कहीं किसी पुराने पंखे की चरमराहट सुनाई दे रही थी।
हर कदम के साथ उसके दिल की धड़कन तेज़ हो रही थी।
उसके दिमाग में वो फोटो घूम रही थी —
नेहा की, इसी गली में, कल रात।
"वो यहां क्यों आई थी? किससे मिलने? या… किससे छुपने?"
पुराना घर
गली के बीचोंबीच एक पुराना, तीन मंज़िला मकान खड़ा था।
बाहर का रंग उखड़ चुका था, और खिड़कियों के शीशे टूटे हुए थे।
दरवाज़े पर जंग लगा ताला था,
लेकिन अर्जुन को साफ़ दिखा कि वो ताला नया लगाया गया है —
जैसे किसी ने हाल ही में इसे बंद किया हो।
उसका हाथ खुद-ब-खुद ताले को छू गया।
ताला ठंडा था, मतलब इसे कल ही लगाया गया होगा।
अर्जुन की सांसें धीमी हो गईं।
"अगर नेहा यहां थी… तो ये दरवाज़ा उसने खोला था या किसी और ने?"
अतीत का साया
अचानक, उसकी नज़र दाईं ओर पड़ी —
एक दीवार पर हल्का-सा लाल निशान था,
जो बारिश के बावजूद धुंधला नहीं हुआ था।
वो उसी निशान को घूर रहा था जब अचानक एक पुरानी याद ने उसे घेर लिया।
दस साल पहले —
वो और उसका सबसे अच्छा दोस्त विवेक, इसी गली से गुजर रहे थे।
उसी समय उन्हें इसी घर के बाहर चीख सुनाई दी थी।
जब वो अंदर पहुंचे, तो उन्होंने सिर्फ़ टूटी हुई कुर्सियां, बिखरे कागज़ और
एक लाल रंग का फैला हुआ दाग देखा था…
वो दाग, जो आज भी दीवार पर मौजूद था।
उस रात के बाद विवेक गायब हो गया था।
और किसी ने उसकी गुमशुदगी की तहकीकात नहीं की थी।
अचानक आती आवाज़
अर्जुन सोच में डूबा खड़ा था,
तभी पीछे से धीमी सी आवाज़ आई —
"यहां आना तुम्हारे लिए ठीक नहीं है, अर्जुन।"
अर्जुन ने पलटकर देखा —
सड़क के किनारे, पुराने लैम्पपोस्ट के नीचे एक आदमी खड़ा था।
उसका चेहरा आधा छाया में था,
लेकिन उसकी आंखें सीधी अर्जुन पर टिकी थीं।
अर्जुन ने आगे बढ़कर पूछा,
"तुम कौन हो? और नेहा कहां है?"
आदमी ने बस मुस्कुराया,
"सवाल बहुत हैं… लेकिन जवाब अभी महंगा है।"
इतना कहकर वो मुड़कर अंधेरे में चला गया।
नेहा की निशानी
अर्जुन का मन अभी भी बेचैन था।
वो घर के चारों ओर घूमकर पीछे की तरफ़ गया।
वहां एक टूटी हुई खिड़की के पास उसे कुछ चमकता दिखा।
उसने हाथ बढ़ाकर उठाया —
वो नेहा का काला स्कार्फ था, जिस पर हल्का-सा परफ्यूम अभी भी मौजूद था।
उसका दिल जोर से धड़कने लगा।
"तो वो यहां थी… और शायद अभी भी खतरे में है।"
अंदर की हलचल
अचानक, मकान के अंदर से हल्की सी आहट आई —
जैसे कोई लकड़ी के फर्श पर चल रहा हो।
अर्जुन खिड़की से झांकने ही वाला था कि…
उसके फोन पर फिर वही नंबर से मैसेज आया:
"तुम्हारे पास सिर्फ़ 48 घंटे हैं। सच जानना है तो अपने अतीत का दरवाज़ा खोलो।"
मैसेज के साथ एक पुरानी फोटो अटैच थी —
फोटो में वही मकान था,
लेकिन उसमें खिड़की पर खड़ी एक लड़की मुस्कुरा रही थी…
और वो लड़की नेहा नहीं थी।
अर्जुन की रीढ़ में सिहरन दौड़ गई।
"ये खेल… बहुत पुराना है, और नेहा सिर्फ़ इसकी एक कड़ी है।"
अध्याय 6 – अतीत का दरवाज़ा
48 घंटे।
बस इतना ही वक्त था अर्जुन के पास।
फोन की स्क्रीन पर घड़ी की टिक-टिक उसे ऐसे चुभ रही थी,
जैसे हर सेकंड उसकी रगों से उम्मीद का खून खींच रही हो।
बारिश अब रुक चुकी थी,
लेकिन शहर की हवा में नमी और अजीब-सी खामोशी थी।
अर्जुन अपने कमरे में बैठा,
टेबल पर फैली पुरानी फाइलें, पीली पड़ चुकी तस्वीरें,
और टुकड़ों में बंटे हुए अख़बारों के कटिंग्स को घूर रहा था।
पुराना ताला, पुराना सच
उसका मन बार-बार उसी मकान के दरवाज़े पर अटक जाता —
वो नया ताला, वो पुराना लाल दाग, और नेहा का स्कार्फ।
"अगर नेहा वहां थी… तो वो अकेली नहीं थी।"
लेकिन सवाल ये था — वो वहां क्यों गई थी?
उसने स्कार्फ को अपनी उंगलियों के बीच पकड़ा,
उसकी खुशबू में एक अजीब-सी बेचैनी थी।
परफ्यूम वही था, जो नेहा ऑफिस में रोज़ लगाती थी।
मतलब… वो हाल ही में वहां गई थी,
और शायद अपने ही कदमों से, मजबूरी में।
फ्लैशबैक – दस साल पहले
अर्जुन की आंखें बंद हुईं,
और अतीत का दरवाज़ा खुद-ब-खुद खुल गया।
रात के 11 बजे
वो और विवेक बाइक से उसी गली से गुजर रहे थे।
बारिश उस दिन भी हो रही थी,
लेकिन उससे ज़्यादा बारिश हो रही थी अफवाहों की —
लोग कह रहे थे कि पुराने मकान में कोई रहस्यमयी किरायेदार आया है।
तभी एक चीख ने सब कुछ बदल दिया।
वो आवाज़ इतनी दर्दनाक थी कि आज भी अर्जुन के कानों में गूंजती थी।
दोनों ने बाइक रोकी और मकान का दरवाज़ा धकेला —
अंदर अंधेरा, टूटी हुई कुर्सियां,
और फर्श पर फैला लाल दाग।
"कोई है?" विवेक ने पुकारा।
और तभी… ऊपर वाली मंज़िल की खिड़की पर किसी का साया दिखा।
एक लड़की, जिसके लंबे बाल बारिश की बूंदों में भीग रहे थे,
बस एक पल के लिए दिखाई दी… फिर गायब हो गई।
वो लड़की कौन थी?
और क्यों कुछ ही मिनट बाद विवेक भी गायब हो गया,
इसका जवाब अर्जुन आज तक नहीं जान पाया।
वर्तमान में वापसी
अर्जुन ने झटके से आंखें खोलीं।
दिल इतनी तेज़ी से धड़क रहा था,
जैसे वो खुद घड़ी के पेंडुलम में बदल गया हो।
"क्या नेहा उसी लड़की से जुड़ी है?
क्या ये खेल दस साल पहले शुरू हुआ था?"
फोन पर एक और मैसेज आया:
“तुम अतीत का दरवाज़ा खोले बिना आगे नहीं बढ़ सकते।
आधी रात को पुरानी गली के मकान के अंदर आना। अकेले।”
अर्जुन ने मैसेज पढ़कर गहरी सांस ली।
ये किसी फिल्मी चुनौती जैसा था,
लेकिन यहां कोई स्क्रिप्ट नहीं थी…
यहां हर गलती जान ले सकती थी।
आधी रात का सफ़र
घड़ी ने 12 बजने का इशारा किया,
और अर्जुन उसी गली की तरफ़ बढ़ा।
आज सड़कें और भी सुनसान थीं,
सिर्फ़ उसके कदमों की आहट और दूर से आती कुत्तों की भौंक सुनाई दे रही थी।
मकान के सामने पहुंचकर उसने देखा —
ताला टूटा हुआ था।
किसी ने पहले ही अंदर का रास्ता खोल दिया था।
अर्जुन ने धीरे से दरवाज़ा धकेला…
अंदर धूल, नमी, और अतीत की गंध मिली-जुली थी।
फर्श पर पुराने अख़बार बिखरे थे,
जिनके हेडलाइन में बस एक शब्द साफ़ दिख रहा था — “गुमशुदा”।
ऊपर से आती आहट
तभी ऊपर से कदमों की आहट आई।
अर्जुन ने टॉर्च ऑन की और सीढ़ियों की तरफ़ बढ़ा।
लकड़ी की सीढ़ियां चरमराईं,
जैसे वो भी इतने साल से किसी का इंतजार कर रही हों।
ऊपर पहुंचते ही उसने देखा —
कमरे में नेहा खड़ी थी।
उसकी आंखों में डर था,
और होंठ कांप रहे थे, जैसे कुछ कहना चाहती हो लेकिन कह न पा रही हो।
"नेहा… तुम ठीक हो?" अर्जुन ने आगे बढ़ते हुए पूछा।
नेहा ने बस धीरे से सिर हिलाया,
और फुसफुसाई —
"तुम्हें यहां नहीं आना चाहिए था… अब तुम भी इस खेल में फंस गए हो।"
अचानक अंधेरा
उससे पहले कि अर्जुन कुछ और पूछ पाता,
बत्ती गुल हो गई।
पूरे मकान में अंधेरा छा गया,
और हवा में एक अजीब-सी ठंडक भर गई।
तभी कमरे के कोने से किसी ने कहा —
"वापस चले जाओ, अर्जुन… वरना तुम्हारा अतीत तुम्हें खा जाएगा।"
टॉर्च की रोशनी उस दिशा में घुमाई तो…
कमरा खाली था।
लेकिन नेहा… गायब हो चुकी थी।
अध्याय 7 – काउंटडाउन
घड़ी: रात 12:05
अर्जुन वहीं खड़ा था…
मकान का कमरा, नेहा का अचानक गायब होना,
और वो रहस्यमयी आवाज़ जो अंधेरे में तैर रही थी,
सब उसकी नसों में डर का ज़हर भर रहे थे।
उसका दिल कह रहा था कि नेहा यहीं कहीं है,
लेकिन दिमाग चिल्ला रहा था —
"ये जगह तुम्हें खत्म कर देगी।"
वो बाहर निकल आया,
लेकिन उसकी आंखें बार-बार मकान की टूटी खिड़कियों में झांक रही थीं,
मानो दीवारें भी उसे चुपचाप ताक रही हों।
सुबह की बेचैनी
अगली सुबह ऑफिस में सब कुछ सामान्य दिख रहा था,
लेकिन अर्जुन के लिए कुछ भी सामान्य नहीं था।
फाइलों के बीच उसे बार-बार वही स्कार्फ और वो लाल दाग याद आ रहे थे।
कंप्यूटर स्क्रीन पर सामने प्रोजेक्ट रिपोर्ट थी,
लेकिन उसके मन में बस एक ही प्रोजेक्ट चल रहा था —
नेहा को ढूंढना, और सच्चाई को खोलना।
तभी उसके मेलबॉक्स में एक नया ईमेल आया —
From: unknown@shadowmail.com
Subject: “24 hours left…”
अंदर सिर्फ एक लाइन लिखी थी —
“अगर उसे बचाना है, तो अपने अतीत का सबसे बड़ा डर सामने लाओ।”
पुराने दोस्त की वापसी
अर्जुन इस ईमेल को पढ़ ही रहा था कि उसके केबिन का दरवाज़ा खटखटाया।
अंदर आया — समर, उसका कॉलेज का पुराना दोस्त।
जिसे उसने 8 साल पहले आखिरी बार देखा था…
उस रात, जब विवेक गायब हुआ था।
"अरे, समर? तू… यहाँ?" अर्जुन हैरान था।
समर मुस्कुराया,
लेकिन उस मुस्कान में कुछ अजीब-सा ठंडापन था।
"तूने सोचा मैं हमेशा के लिए चला गया?
कुछ पुराने हिसाब बाकी हैं, अर्जुन।"
अर्जुन की रगों में खून जम गया।
समर वही था, जिसने आखिरी बार उस पुराने मकान का दरवाज़ा खोला था,
और फिर… सबकुछ बदल गया था।
टकराव
"तू यहां क्यों आया है?" अर्जुन ने सीधे पूछा।
समर ने जेब से एक पुरानी फोटो निकाली —
उसमें तीन लोग थे — अर्जुन, विवेक, और नेहा।
लेकिन फोटो की तारीख थी 10 साल पुरानी।
"ये कैसे…? नेहा तो… अभी हाल में मिली थी!" अर्जुन बुदबुदाया।
समर ने बस इतना कहा —
"तू सोच रहा है कि तू उसे जानता है… लेकिन सच ये है, अर्जुन,
वो तुझसे भी पहले मेरा अतीत है।"
खतरनाक सौदा
समर ने एक ऑफर दिया —
"मैं तुझे नेहा तक ले जा सकता हूँ…
लेकिन इसकी कीमत तेरे अतीत का सबसे काला राज़ है।"
अर्जुन जानता था, ये सौदा सिर्फ एक चाल भी हो सकता है।
लेकिन 24 घंटे में उसके पास सोचने का वक्त नहीं था।
"ठीक है, लेकिन मुझे पहले ये जानना होगा कि वो जिंदा है या नहीं।"
समर ने अपना फोन निकाला,
और एक वीडियो प्ले किया —
नेहा एक अंधेरे कमरे में बैठी थी,
उसकी आंखें लाल और सूजी हुई थीं,
और होंठ कांप रहे थे —
"अर्जुन… प्लीज़… जल्दी आओ…"
समय का दबाव
अब सिर्फ 22 घंटे बचे थे।
अर्जुन को या तो समर के साथ उस पुराने मकान में जाना था,
या अकेले अपनी राह चुननी थी।
दोनों रास्ते खतरनाक थे।
समर ने जाते-जाते कहा —
"आज रात 9 बजे, पुरानी फैक्ट्री के पास मिलना।
वरना अगली सुबह तेरे लिए भी देर हो जाएगी।"
अध्याय 8 – छलावा
रात 8:50 – पुरानी फैक्ट्री का इलाक़ा
चारों तरफ वीरानी थी।
टूटी खिड़कियों से आती ठंडी हवा
फैक्ट्री के अंदर लोहे के दरवाज़ों को हिलाती हुई
कभी तेज़ कर्कश आवाज़ करती,
तो कभी एकदम सन्नाटा।
अर्जुन अपनी बाइक से उतरा।
सड़क पर स्ट्रीट लाइट की रोशनी सिर्फ कुछ कदम तक जाती थी,
उसके आगे बस अंधेरा था —
ऐसा अंधेरा जो सिर्फ आंखों को नहीं,
दिल को भी डरा देता है।
वो फैक्ट्री के गेट तक पहुंचा।
गेट पर पुराना जंग लगा ताला खुला हुआ था,
जैसे किसी ने उसके लिए रास्ता पहले से तैयार कर रखा हो।
रात का खेल शुरू
अंदर कदम रखते ही उसकी नाक में
पुरानी मशीनों की जली हुई ग्रीस और धूल की गंध घुस गई।
जमीन पर जगह-जगह टूटे शीशे और लोहे के टुकड़े पड़े थे।
ऊपर छत के पंखे धीरे-धीरे घूम रहे थे,
लेकिन उनकी परछाइयां दीवारों पर
मानो किसी जीवित प्राणी की तरह हिल रही थीं।
"तू आ गया..."
अचानक अंधेरे से आवाज़ आई।
समर लोहे के एक खंभे के पास खड़ा था,
उसके हाथ में एक टॉर्च और…
कमर के पास एक रिवॉल्वर।
"नेहा कहाँ है?"
अर्जुन ने बिना समय गवांए पूछा।
"सबर कर… खेल अभी शुरू हुआ है।"
समर की आवाज़ में वो पुराना दोस्ताना अंदाज़ नहीं था,
बस ठंडी, तेज़, और चुभने वाली धार थी।
खुलासे की पहली चाल
समर ने एक पुराना म्यूजिक प्लेयर निकाला और चालू किया।
एक पुराना गाना बजने लगा —
"तेरी याद… तेरी बातें…"
ये वही गाना था जो 10 साल पहले
उस रात फैक्ट्री के पास बज रहा था,
जब विवेक गायब हुआ था।
अर्जुन का दिल धक से रह गया।
"तुझे पता है, अर्जुन," समर ने कहा,
"कुछ लोग अतीत से भागते हैं…
लेकिन कुछ लोग अतीत को वापस खींच लाते हैं।"
अर्जुन ने गुस्से में कहा —
"अगर तू सच में नेहा को बचाना चाहता है तो ये ड्रामा बंद कर।"
समर हंसा,
लेकिन उस हंसी में पागलपन था।
"नेहा को मैं नहीं… कोई और कंट्रोल कर रहा है।"
तीसरे खिलाड़ी की एंट्री
इतना कहते ही फैक्ट्री की दूसरी तरफ से
कदमों की आवाज़ गूंजी।
अंधेरे से एक शख्स बाहर आया —
चेहरा पूरी तरह मास्क से ढका हुआ।
उसके हाथ में एक पुराना कैमरा था,
जिस पर खून के धब्बे लगे थे।
"तुम दोनों अब मेरे खेल का हिस्सा हो,"
उसने भारी आवाज़ में कहा।
"24 घंटे पहले मैंने नेहा को ले लिया…
लेकिन सिर्फ उसे नहीं, तुम्हारा अतीत भी कैद कर लिया है।"
अर्जुन ने समर की तरफ देखा,
समर ने कंधे उचकाए —
"मैंने कहा था न, असली दुश्मन मैं नहीं हूँ।"
वीडियो का सच
मास्क वाले ने कैमरे का बटन दबाया,
और सामने दीवार पर वीडियो प्रोजेक्ट हो गया।
वीडियो में वही पुराना मकान था…
नेहा एक कुर्सी से बंधी हुई थी,
लेकिन पीछे की दीवार पर
विवेक की एक बड़ी सी ब्लैक-एंड-व्हाइट फोटो टंगी थी।
"वो… जिंदा है?"
अर्जुन की आवाज़ टूट गई।
मास्क वाला हंसा —
"शायद… या शायद नहीं।
तुम्हारे पास सच जानने के लिए सिर्फ 20 घंटे हैं।"
खेल का नया नियम
मास्क वाले ने कहा —
"अगर नेहा को बचाना है तो
तुम दोनों को साथ मिलकर उस रात की सच्चाई निकालनी होगी…
वो रात, जब विवेक गायब हुआ था।"
"और याद रखो," उसने जोड़ते हुए कहा,
"तुम्हारा हर कदम रिकॉर्ड हो रहा है।
एक गलती… और नेहा की आखिरी सांस तुम्हारे कानों तक पहुंचेगी।"
अगले ही पल फैक्ट्री की लाइट्स बंद हो गईं,
और जब अर्जुन ने फिर आंखें खोलीं…
समर उसके सामने से गायब था।
अध्याय 9 – वो रात
फ्लैशबैक – 10 साल पहले
बरसात का मौसम हमेशा से इस शहर को किसी रहस्यमयी कहानी की तरह लपेट लेता था।
सड़क किनारे टप-टप गिरती बूंदों की आवाज़,
हवा में घुली मिट्टी और पक्की सड़क की मिली-जुली महक,
और बीच-बीच में बिजली की गड़गड़ाहट…
ये सब मिलकर उस शाम को अजीब सा रोमांचक बना रहे थे।
शाम के करीब 7:15 बजे,
शहर के पुराने हिस्से में एक जर्जर मैदान था,
जहां से थोड़ी दूरी पर एक फैक्ट्री खड़ी थी —
कई सालों से बंद, टूटे शीशे और जंग लगे गेट के साथ,
जैसे समय ने इसे भुला दिया हो।
उस मैदान में चार लोग खड़े थे —
अर्जुन, नेहा, समर और विवेक।
चारों की उम्र 21-23 साल के बीच थी,
लेकिन उनके चेहरों पर उस वक्त की हंसी मासूम बच्चों जैसी थी।
चार दोस्त, चार रंग
नेहा ने हल्के पीले रंग का कुर्ता पहन रखा था,
बाल खुले, और होंठों पर वो आधी मुस्कान,
जो अर्जुन के लिए किसी सुकून से कम नहीं थी।
विवेक अपने हमेशा वाले अंदाज में था —
जीन की पैंट, गले में लाल रंग का पुराना रुमाल,
और आंखों में वो शरारत जो किसी भी माहौल को हल्का कर देती थी।
समर शांत स्वभाव का था,
उसने नीला शर्ट पहना था,
और हमेशा की तरह मोबाइल पर कुछ टाइप करता जा रहा था।
लेकिन उसके चेहरे पर उस दिन अजीब सा तनाव था,
जो अर्जुन ने नोटिस किया, मगर पूछा नहीं।
अर्जुन खुद बस नेहा को देख रहा था।
उसके मन में एक अजीब सा डर भी था,
जैसे वो जानता हो कि ये शाम किसी अनहोनी का दरवाजा है…
लेकिन उसने वो सोच अपने अंदर ही दबा ली।
योजना
"अरे सुनो… एक आइडिया है,"
विवेक ने उछलते हुए कहा,
"आज फैक्ट्री के अंदर चलते हैं! सुना है वहां भूत-प्रेत हैं।"
नेहा ने उसे घूरा,
"तुम्हारा दिमाग खराब है क्या? रात में, इस मौसम में… और वो भी यहां?"
"डरती हो क्या?" विवेक ने चिढ़ाते हुए कहा।
नेहा ने तुरंत अर्जुन का हाथ पकड़ा,
"तुम बोलो… जाएंगे?"
अर्जुन ने उसकी आंखों में देखा।
वो हल्के से मुस्कुराया,
"अगर तुम साथ हो, तो कहीं भी जाऊंगा।"
समर चुपचाप खड़ा था,
लेकिन उसके होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान आई —
जैसे वो पहले से जानता हो कि आगे क्या होने वाला है।
फैक्ट्री की दहलीज
पुराना गेट आधा टूटा था।
लोहे के पटरों से जंग उतरकर जमीन पर पड़ी थी,
और जब हवा चलती, तो गेट हल्का सा हिलता और
“चीईईं… चीईईं…” की आवाज़ करता।
अंदर कदम रखते ही सीलन की बदबू और
टूटी मशीनों की ठंडी खामोशी ने
चारों को घेर लिया।
अर्जुन आगे था,
उसके पीछे नेहा, फिर विवेक, और आखिर में समर।
टॉर्च की रोशनी में धूल के कण तैरते हुए दिख रहे थे,
जैसे हवा में हजारों छोटे-छोटे रहस्य छुपे हों।
अजीब आवाज़ें
कुछ दूर चलते ही ऊपर से
किसी के कदमों की धीमी आवाज़ आई।
सब रुक गए।
विवेक ने टॉर्च ऊपर घुमाई —
टूटी खिड़की से हवा अंदर आ रही थी,
और शायद लकड़ी के तख्ते हिल रहे थे।
"शायद बिल्ली होगी," समर ने कहा,
लेकिन उसकी आवाज़ थोड़ी कांप रही थी।
नेहा ने अर्जुन का हाथ कसकर पकड़ लिया।
"ये जगह मुझे अच्छी नहीं लग रही," उसने धीमे से कहा।
"चिंता मत करो, मैं हूं ना,"
अर्जुन ने आश्वासन दिया,
लेकिन खुद के सीने की धड़कन तेज़ हो रही थी।
रहस्यमयी कमरा
आखिरकार, उन्हें एक पुराना कमरा मिला।
कमरे में टूटी मशीनें, फटी कुर्सियां और
कोने में रखा एक बड़ा लकड़ी का बॉक्स था।
विवेक हमेशा की तरह उत्सुक था।
उसने बॉक्स खोला —
अंदर पुराने दस्तावेज़, धूल में लिपटे कुछ फोटो…
और एक रिवॉल्वर।
"ये यहां कैसे आया?" नेहा ने घबराकर पूछा।
विवेक ने उसे हाथ में लेकर हंसते हुए कहा,
"शायद फैक्ट्री के मालिक का होगा… या फिर…"
वो कुछ कह पाता,
उससे पहले ही एक भारी आवाज़ कमरे में गूंजी —
"रुको!"
सामना
दरवाजे पर एक लंबा-चौड़ा आदमी खड़ा था।
उसके हाथ में बंदूक थी,
और आंखों में गुस्सा और डर दोनों थे।
"चोरी कर रहे हो?" उसने चिल्लाकर कहा,
और बिना कुछ सोचे गोली चला दी।
गोली दीवार से टकराई,
लोहे की चादर पर लगी,
और वो आवाज़ पूरे हॉल में गूंज गई।
नेहा चीख उठी,
अर्जुन ने उसे अपनी बाहों में खींच लिया।
समर आगे बढ़ा और चौकीदार को धक्का देने लगा।
इस अफरा-तफरी में…
किसी ने गौर ही नहीं किया कि विवेक वहां से गायब हो गया था।
गुमशुदगी
जब थोड़ी देर बाद माहौल शांत हुआ,
अर्जुन ने चारों तरफ देखा —
विवेक कहीं नहीं था।
सिर्फ फर्श पर उसका लाल रुमाल पड़ा था,
जिस पर ताजा खून का छोटा सा दाग था।
नेहा रो रही थी,
अर्जुन उसे सांत्वना देने की कोशिश कर रहा था,
लेकिन उसकी अपनी आंखों में डर और शक दोनों थे।
समर बस चुपचाप दूर खड़ा था,
और उसकी आंखों में एक अजीब चमक थी —
जैसे वो कुछ जानता हो,
जो बाकी तीनों को नहीं पता।
विवेक की तलाश
बरसात अब तेज हो चुकी थी।
फैक्ट्री के बाहर निकलते ही सड़क की बत्तियां टिमटिमा रही थीं,
और हवा में ठंड ऐसी थी कि नेहा के होंठ नीले पड़ने लगे।
उसने अर्जुन का हाथ और कसकर पकड़ लिया।
"वो यहीं कहीं होगा… शायद डर के मारे छुप गया हो,"
अर्जुन ने खुद को दिलासा देने वाले अंदाज में कहा।
"नहीं अर्जुन… मैंने उसकी आंखों में कुछ देखा था,
जैसे वो हमें छोड़कर कहीं चला गया हो,"
नेहा की आवाज़ धीमी, लेकिन डर से भरी थी।
समर पीछे-पीछे चल रहा था,
बार-बार अपना मोबाइल चेक कर रहा था,
और बीच-बीच में हल्की सी मुस्कान आ जाती थी —
जैसे वो इस अफरा-तफरी में भी किसी गुप्त योजना पर काम कर रहा हो।
पहला सुराग
मैदान के कोने पर उन्हें एक छोटा सा झोपड़ा दिखा,
जहां एक बुजुर्ग चौकीदार बीड़ी पी रहा था।
अर्जुन तुरंत उसकी ओर बढ़ा।
"भाई, यहां पास में किसी को देखा क्या?
जीन और लाल रुमाल पहना था," अर्जुन ने जल्दी-जल्दी पूछा।
बूढ़ा चौकीदार ने बीड़ी का कश लिया,
फिर बोला,
"हाँ, वो लड़का कुछ देर पहले यहां से भागते हुए गुज़रा था…
लेकिन अकेला नहीं था। उसके साथ एक आदमी था,
जिसके हाथ में बंदूक थी।"
नेहा का चेहरा सफेद पड़ गया।
"क्या… मतलब उसे किसी ने पकड़ लिया?"
बूढ़े ने सिर हिलाया,
"और सुनो… वो आदमी उसी पुरानी फैक्ट्री का नहीं है,
वो तो यहां के इलाकाई गुंडों में से एक है।"
समर की चुप्पी
ये सुनकर अर्जुन और नेहा दोनों हड़बड़ा गए,
लेकिन समर बस शांत खड़ा रहा,
जैसे ये सब सुनकर भी उसके अंदर कोई हलचल नहीं हुई हो।
"तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे?" अर्जुन ने गुस्से में पूछा।
समर ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा,
"मुझे लगता है… विवेक खुद उनके साथ गया है।"
"क्या बकवास है!" नेहा चिल्लाई।
"वो हमारा दोस्त है… वो क्यों जाएगा?"
समर की मुस्कान थोड़ी गहरी हो गई,
"दोस्त?
कभी-कभी जो सबसे करीब होता है,
वो सबसे बड़ा खेल खेलता है।"
अर्जुन का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।
ये बात सच थी या बस डर फैलाने के लिए कही गई थी —
वो नहीं जानता था।
बारिश में सफर
तीनों ने तय किया कि विवेक को ढूंढना ही होगा।
रास्ता कीचड़ से भरा था,
पानी सड़क पर नालों की तरह बह रहा था,
और हर बिजली की चमक के साथ
सड़क किनारे पुराने पेड़ों की परछाई ऐसे लगती,
जैसे कोई उनके पीछे-पीछे चल रहा हो।
नेहा का कुर्ता भीग चुका था,
उसके बाल चेहरे पर चिपक गए थे,
लेकिन उसकी आंखों में डर के साथ
वो अजीब सी उम्मीद भी थी —
कि कहीं से विवेक दौड़ता हुआ आ जाए और कहे,
"मैं ठीक हूं।"
अचानक हमला
जब वे एक सुनसान गली से गुजर रहे थे,
अचानक पीछे से दो मोटरसाइकिलें आईं।
उन पर चार आदमी सवार थे,
चेहरे पर कपड़ा बंधा हुआ,
और हाथों में लोहे की रॉड और चाकू थे।
"भागो!" अर्जुन चिल्लाया।
लेकिन पीछे से एक नेहा के रास्ते में आकर खड़ा हो गया,
उसकी बांह पकड़ ली।
नेहा चीख उठी।
अर्जुन ने बिना सोचे-समझे उस आदमी पर हमला कर दिया,
दोनों सड़क के कीचड़ में गिर पड़े।
समर ने भी लड़ाई में हिस्सा लिया,
लेकिन उसकी हर हरकत…
थोड़ी धीमी, थोड़ी अजीब थी —
जैसे वो जानबूझकर पूरे जोर से नहीं लड़ रहा हो।
नेहा का डर
किसी तरह तीनों वहां से भाग निकले,
लेकिन नेहा पूरी तरह कांप रही थी।
उसके हाथों पर खून के हल्के निशान थे,
शायद हमलावर की पकड़ से।
"अर्जुन… मुझे लगता है, ये सब किसी ने प्लान किया है,"
उसने रोते हुए कहा।
"पहले फैक्ट्री, फिर विवेक का गायब होना,
और अब ये हमला… ये सब एक-दूसरे से जुड़ा है।"
अर्जुन ने उसकी आंखों में देखा।
उसे भी लग रहा था कि कहीं न कहीं
इस खेल के धागे उनके किसी अपने के हाथ में हैं।
और तभी…
समर ने पीछे मुड़कर मुस्कुराते हुए कहा,
"हां, जुड़ा तो सब है…
बस तुम लोग अब सही वक्त का इंतज़ार करो।"
विवेक का मिलना
बारिश अब धीमी हो चुकी थी,
लेकिन हवा में ठंड इतनी थी कि सांस लेते ही फेफड़े चुभने लगते।
गली के आख़िरी मोड़ पर एक टूटा-फूटा गोदाम था,
जहां से हल्की-सी रोशनी झिलमिला रही थी।
अर्जुन ने इशारा किया,
"शायद वही है…"
नेहा ने धीरे-धीरे कदम बढ़ाए,
दिल की धड़कन इतनी तेज़ थी कि कानों में बस धक-धक की आवाज़ गूंज रही थी।
जब वे दरवाजे के पास पहुंचे,
अंदर से धीमी-सी कराहने की आवाज़ आई।
अर्जुन ने तुरंत दरवाजा धकेला —
और जो नज़ारा उनके सामने था…
वो हमेशा उनकी यादों में जिंदा रहने वाला था।
विवेक एक कुर्सी पर बंधा हुआ था,
चेहरा सूजा हुआ, होंठ फटे हुए,
और आंखों में वो खालीपन…
जैसे ज़िंदगी का आधा हिस्सा छिन गया हो।
उसके कपड़े फटे हुए थे,
और हाथ-पांव की रस्सियां इतनी कसी हुई थीं
कि खून के धब्बे बन गए थे।
नेहा की आंखों से आंसू अपने आप बहने लगे।
"विवेक…!"
वो दौड़कर उसके पास गई,
लेकिन तभी विवेक ने अपना चेहरा थोड़ा उठाया —
और धीमे से कहा,
"भागो… अर्जुन… नेहा… यहां से भागो।"
समर का खेल
अर्जुन रस्सियां खोलने ही वाला था,
कि पीछे से समर की आवाज़ आई,
"मत छूओ।"
अर्जुन ने हैरानी से पलटकर देखा,
"तुम पागल हो गए हो क्या? वो हमारा दोस्त है!"
समर आगे बढ़ा,
उसके चेहरे पर एक अजीब सी ठंडक थी।
"दोस्त?
तुम्हें पता भी है कि ये यहां क्यों है?"
नेहा ने गुस्से में कहा,
"क्यों है, ये बाद में देखेंगे! पहले इसे बचाते हैं!"
लेकिन समर ने अपनी जेब से एक पिस्तौल निकाली
और अर्जुन की तरफ तान दी।
"कोई इसे छुएगा नहीं।"
नेहा का दिल बैठ गया।
"समर… तुम ये क्या कर रहे हो?"
समर हल्का सा मुस्कुराया,
"वो रात, दस साल पहले,
जब तुम दोनों ने मुझे उस फैक्ट्री में अकेला छोड़ दिया था…
वो मैं कभी नहीं भूला।"
विवेक की सच्चाई
विवेक ने भारी सांस लेते हुए कहा,
"अर्जुन… नेहा… ये सच कह रहा है।
वो रात… मैंने ही पुलिस को खबर दी थी।
मुझे लगा था मैं सही कर रहा हूं,
लेकिन… सब गलत हो गया।"
अर्जुन के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
"मतलब… जो हादसा हुआ… वो तुम्हारी वजह से?"
विवेक की आंखों से आंसू बहने लगे,
"हाँ… और उस हादसे में समर का छोटा भाई… मर गया।"
नेहा ने अपना चेहरा दोनों हाथों से ढक लिया।
उसके कानों में सिर्फ बारिश की बूंदों और विवेक की टूटी-फूटी आवाज़ की गूंज थी।
अंतिम फैसला
समर ने पिस्तौल सीधी विवेक के सिर पर रख दी।
"आज… मैं बदला पूरा करूंगा।"
अर्जुन ने आगे बढ़कर समर का हाथ पकड़ा,
"समर… बदला लेने से तुम्हारा दर्द कम नहीं होगा।"
लेकिन समर की आंखों में वो खालीपन था,
जो किसी भी समझाने वाली बात से भर नहीं सकता था।
"दर्द कम नहीं होगा… लेकिन इंसाफ मिलेगा।"
गोदाम में सन्नाटा छा गया।
बारिश की बूँदें छत पर टप-टप गिर रही थीं,
और तीनों की सांसों की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी।
नेहा ने कांपते हुए कहा,
"अगर तुमने आज इसे मार दिया…
तो तुम भी वही बन जाओगे,
जिससे तुम नफ़रत करते हो।"
गोली की आवाज़
गोदाम में समय जैसे रुक गया था।
समर की उंगली ट्रिगर पर थी।
विवेक की सांसें टूट-टूट कर चल रही थीं,
और अर्जुन बीच में खड़ा,
दोनों को बचाने की कोशिश कर रहा था।
नेहा, पूरी ताकत से चिल्लाई —
"समर… मत करो!"
लेकिन उसी पल…
धाँय!
गोली की आवाज़ पूरे गोदाम में गूंज गई।
खून का धब्बा
अर्जुन ने अपने सीने पर गर्माहट महसूस की।
उसने नीचे देखा —
खून…
लेकिन वो उसका नहीं था।
विवेक के सिर का एक कोना लहूलुहान था,
लेकिन वो अभी भी सांस ले रहा था।
गोली उसके कान के पास से छूकर निकली थी।
समर की आंखें फैल गईं।
"मैं… मैं इसे मारना नहीं चाहता था…"
लेकिन तब तक बाहर से पुलिस की सायरन की आवाज़ आने लगी।
पुलिस का आना
दरवाजा तोड़कर इंस्पेक्टर राजीव अंदर आए।
"हथियार नीचे रखो, समर!"
समर ने चारों तरफ देखा,
जैसे उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ये सब यहीं खत्म हो जाएगा।
वो धीरे-धीरे पिस्तौल नीचे रखने लगा,
लेकिन तभी…
विवेक ने हांफते हुए कहा,
"अर्जुन… सच अभी भी बाकी है…
ये सब… किसी और के कहने पर कर रहा है…"
नया नाम
अर्जुन ने झुककर पूछा,
"किसके कहने पर?"
विवेक ने धीरे से एक नाम लिया —
और अर्जुन के चेहरे का रंग उड़ गया।
"ये… ये कैसे हो सकता है?"
नेहा ने हैरानी से पूछा,
"किसका नाम लिया इसने?"
अर्जुन की आंखों में डर और गुस्सा दोनों थे,
"वो… हमारा बॉस… मिस्टर मेहरा।"
अंतिम नज़र
पुलिस समर को ले जा रही थी,
लेकिन उसकी नज़रें अब भी अर्जुन और नेहा पर टिकी थीं।
जाते-जाते उसने सिर्फ इतना कहा —
"अर्जुन… जो तुम सोच रहे हो…
उससे कहीं ज़्यादा गहरा खेल है ये।"
बारिश फिर से तेज़ हो गई थी।
गोदाम की छत से पानी टपक रहा था,
और अर्जुन के मन में एक ही सवाल गूंज रहा था —
"क्या मैं अब सच जानने के लिए तैयार हूँ?"
अध्याय 10 – सच की जड़ें (भाग 1)
बारिश की बूंदें अब रुक चुकी थीं, लेकिन सड़कें अभी भी भीगी हुई थीं।
ऑफिस की बिल्डिंग के बाहर हवा में गीली मिट्टी की खुशबू फैली हुई थी, पर अर्जुन के लिए इस सुगंध में भी बेचैनी का रंग घुला हुआ था।
गोदाम में जो देखा, उसने उसकी नींद, चैन, और यहां तक कि उसकी भूख तक छीन ली थी।
ऑफिस के गेट के पास पहुंचते ही उसने देखा—गेट के बाहर दो अनजान चेहरे खड़े थे।
काले कपड़े, गहरी आंखें, और हाथ में वॉकी-टॉकी जैसा कुछ।
उनकी नज़रें अर्जुन पर कुछ ज्यादा ही देर तक टिकी रहीं।
अर्जुन ने सामान्य बने रहने की कोशिश की, लेकिन दिल की धड़कन अपने आप तेज़ हो गई।
ऑफिस का अंदरूनी माहौल भी बदला हुआ था।
सीढ़ियां चढ़ते वक्त, उसने महसूस किया कि सामान्य दिनों की चहलकदमी गायब थी।
कर्मचारी अपनी-अपनी कुर्सियों पर बैठे थे, लेकिन उनके चेहरे पर किसी अनकहे डर का साया था।
कंप्यूटर स्क्रीन पर खुली स्प्रेडशीट्स और ईमेल्स पर उनकी आंखें टिकी थीं, मगर दिमाग कहीं और भटक रहा था।
अर्जुन की नज़रें सीधे नेहा को खोज रही थीं।
वो अपनी सीट पर बैठी थी, लेकिन उसकी आंखें थकी हुई और चेहरे पर रंग उड़ा हुआ था।
उसके होंठ बमुश्किल हिल रहे थे, जैसे खुद से कोई दबी-दबी बात कर रही हो।
अर्जुन उसकी टेबल के पास जाकर धीरे से बोला—
"नेहा, तुम ठीक हो?"
नेहा ने उसकी तरफ देखे बिना जवाब दिया—
"ठीक? अर्जुन, हम दोनों जिस जाल में फंस चुके हैं, उसमें से निकलना अब शायद नामुमकिन है।"
अर्जुन उसकी आंखों में देखने की कोशिश करता है, लेकिन वो नज़रें चुरा लेती है।
उसी वक्त, लिफ्ट का "डिंग" होता है।
पूरा ऑफिस हल्का-सा चुप हो जाता है, जैसे किसी राजा के दरबार में राजा के प्रवेश से पहले हो।
लिफ्ट से बाहर निकलते ही माहौल में एक ठंडक-सी फैल जाती है।
चमचमाते ग्रे सूट में, हाथ में महंगे सिगार का केस लिए, मिस्टर मेहरा अंदर आते हैं।
उनके साथ दो और लोग—चौड़े कंधे, काले कपड़े, और कमर के पास हल्का-सा उभार, जो अर्जुन की तेज नज़र से छुपता नहीं।
"गुड मॉर्निंग, एवरीवन!" – मेहरा की आवाज़ गूंजती है, जिसमें एक नकली गर्मजोशी है, जैसे किसी शिकारी की मुस्कान।
लेकिन उनकी आंखें… वो ठंडी, नुकीली, जैसे सामने वाले की रूह तक को चीर दें।
उनके गुजरते ही लोग जल्दी-जल्दी अपने कंप्यूटर पर टाइप करने लगते हैं, लेकिन अर्जुन नोटिस करता है—हर कोई सांस रोके हुए है।
नेहा अपने बैग की चेन ठीक करने का नाटक करते हुए फुसफुसाती है—
"ये लोग सिर्फ बॉस नहीं हैं, अर्जुन… ये वो तूफान हैं जिसमें जिसने भी कदम रखा, कभी लौटकर नहीं आया।"
अर्जुन के दिमाग में एक ही सवाल घूम रहा था—
"अगर ये सच है… तो मैं अब तक जिंदा कैसे हूं?"
अध्याय 10 – सच की जड़ें (भाग 2)
मिस्टर मेहरा अपने कैबिन की ओर बढ़ते हैं, लेकिन उनकी चाल धीमी है, जैसे हर कदम सोच-समझकर रखा जा रहा हो।
रास्ते में उनकी आंखें ऑफिस के हर कोने को ऐसे स्कैन कर रही थीं, जैसे कोई कमांडर अपने सैनिकों की जांच कर रहा हो।
उनकी मुस्कान बनी हुई थी, लेकिन अर्जुन ने महसूस किया—ये मुस्कान किसी स्वागत के लिए नहीं, बल्कि डर फैलाने के लिए थी।
अर्जुन की नज़र उनके हाथ में पकड़े सिगार केस पर जाती है।
वो केस चमक रहा था, और उस पर उकेरा हुआ एक नाम—"La Muerte"—जिसका मतलब अर्जुन को बाद में पता चलेगा: मौत।
कैबिन में पहुंचकर मेहरा ने दरवाज़ा बंद नहीं किया, बल्कि आधा खुला छोड़ा।
ये उनका पुराना खेल था—ताकि बाहर बैठे लोग जान सकें कि अंदर क्या हो रहा है, लेकिन अंदर आने की हिम्मत न जुटा पाएं।
अंदर, उन्होंने अपनी कुर्सी पर बैठते हुए चाय मंगवाई।
"नेहा, इधर आओ," – उनकी आवाज़ गहरी और आदेशात्मक थी।
नेहा ने हल्की-सी हिचकिचाहट के बाद उनकी तरफ कदम बढ़ाए।
अर्जुन ने गौर किया—उसके हाथ हल्के-से कांप रहे थे।
मेहरा ने उसे बैठने का इशारा किया, लेकिन नेहा खड़ी ही रही।
"कैसी हो तुम, नेहा?" – मेहरा ने पूछा, लेकिन उनकी आंखें मुस्कान से मेल नहीं खा रही थीं।
"ठीक हूं, सर," – नेहा ने बमुश्किल कहा।
मेहरा ने हल्की हंसी हंसते हुए कहा—
"ठीक? ये शब्द मुझे पसंद नहीं… मैं चाहता हूं मेरे लोग हमेशा ‘बेहतरीन’ रहें। समझीं?"
नेहा ने सिर झुका दिया।
अर्जुन ने देखा, मेहरा की उंगलियां मेज पर एक खास रिद्म में टप-टप कर रही थीं—तीन बार तेज, फिर दो बार धीमा।
शायद कोई इशारा, कोई कोड…
अचानक मेहरा की नज़र बाहर खड़े अर्जुन पर पड़ी।
"तुम… इधर आओ," – उन्होंने अपनी ठंडी मुस्कान के साथ कहा।
अर्जुन के कदम अपने आप भारी हो गए।
कैबिन में दाखिल होते ही उसे एक अजीब-सी ठंडक महसूस हुई, जैसे हवा में ही कोई दबाव हो।
"अर्जुन, है ना नाम?" – मेहरा ने पूछा।
"जी… जी सर," – अर्जुन ने जवाब दिया।
"नेहा कह रही थी तुम काम में तेज हो। ये अच्छा है… लेकिन तेज लोग अक्सर जल्दबाज़ भी होते हैं, और जल्दबाज़ी… मौत की वजह बनती है।"
अर्जुन के गले में जैसे कुछ अटक गया।
मेहरा ने उसकी आंखों में सीधा देखा—ऐसा देखना कि इंसान झूठ तो क्या, सच भी भूल जाए।
उसी वक्त, मेहरा के मोबाइल पर एक कॉल आया।
वो कुछ सेकंड तक चुपचाप सुनते रहे, फिर बहुत धीमे बोले—
"हाँ… अगले शिपमेंट में कोई गड़बड़ नहीं होनी चाहिए। वरना… समझते हो ना?"
अर्जुन का दिल जोर से धड़कने लगा।
शिपमेंट…? क्या ये वही था जो उसने गोदाम में देखा था?
अध्याय 10 – सच की जड़ें (भाग 3)
मेहरा ने कॉल खत्म किया, लेकिन उनकी उंगलियां अभी भी टेबल पर वही पुरानी टप-टप की लय बना रही थीं—
तीन बार तेज, दो बार धीमा।
अर्जुन के दिमाग में सवाल गूंज रहे थे:
"ये शिपमेंट कौन सा? कौन-सा कारोबार है, जो इतने गुप्त तरीके से होता है?"
नेहा ने हल्की-सी निगाह अर्जुन की तरफ डाली, मानो कह रही हो—
"कुछ मत पूछो… बस चुप रहो।"
मेहरा कुर्सी से उठे और कैबिन के कोने में रखी एक लकड़ी की अलमारी के पास गए।
उन्होंने अलमारी का दरवाज़ा खोला और अंदर से एक पतली-सी लोहे की ब्रीफ़केस निकाली।
ब्रीफ़केस के किनारों पर अजीब से निशान बने थे—
कुछ वैसे जैसे किसी पुराने सिक्के पर होते हैं।
उन्होंने ब्रीफ़केस को मेज़ पर रखा, फिर बहुत धीरे से लॉक खोला।
अंदर… मोटी-मोटी फाइलें, कुछ पासपोर्ट, और ढेर सारे लिफ़ाफ़े भरे पड़े थे।
अर्जुन ने बस एक पल के लिए देखा, लेकिन एक फाइल पर छपा नाम साफ़ दिख गया—
“Kolkata – Port Schedule”
"अर्जुन," – मेहरा ने अचानक कहा,
"तुम अभी नए हो, तो सलाह है कि काम पर ध्यान दो… और बाकी चीज़ों में दखल मत दो। यहाँ सवाल पूछने वाले ज़्यादा दिन नहीं टिकते।"
उनके इस वाक्य में न धमकी थी, न गुस्सा—बस एक सच्चाई, जो किसी भी नए इंसान को अंदर तक हिला दे।
उस शाम, जब सब लोग घर जा रहे थे, अर्जुन अपनी टेबल पर बैठा था।
नेहा उसके पास आई और धीमे स्वर में बोली—
"तुम जो सोच रहे हो, वैसा कुछ मत करना। ये खेल तुम्हारे बस का नहीं है।"
अर्जुन ने कहा—
"नेहा, ये सिर्फ़ एक ऑफिस की बात नहीं है… ये उससे कहीं बड़ा है, है ना?"
नेहा ने आंखें झुका लीं।
"अगर मैंने तुम्हें सच बताया, तो तुम्हारी जान खतरे में पड़ जाएगी… और शायद मेरी भी।"
उस रात अर्जुन घर नहीं गया।
वो पास के कैफ़े में बैठा रहा, अपनी नोटबुक में कुछ नाम, तारीख़ें और घटनाएं लिखते हुए।
गोदाम में देखी बोरियां, मेहरा का शिपमेंट वाला कॉल, पोर्ट शेड्यूल वाली फाइल—
ये सब टुकड़े थे, जो किसी बड़े चित्र में फिट हो रहे थे।
करीब 11 बजे, कैफ़े के बाहर एक काली SUV आकर रुकी।
SUV से एक लंबा-चौड़ा आदमी उतरा और सीधे अर्जुन की तरफ देखा।
उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था, लेकिन उसकी आंखें… बिल्कुल मेहरा जैसी ठंडी थीं।
अर्जुन का गला सूख गया।
आदमी ने सिर्फ़ इतना कहा—
"मेहरा साहब ने कहा है… देर रात बाहर रहना आदत मत बनाओ।"
फिर वो SUV में बैठा और अंधेरे में गायब हो गया।
अध्याय 10 – सच की जड़ें (भाग 4)
नेहा के चेहरे पर एक भारीपन था, जैसे कोई पुराना ज़ख़्म फिर से खुल गया हो।
रूफटॉप पर खड़े होकर, तेज़ हवा उसके बालों को उड़ा रही थी,
और उसकी आंखें कहीं दूर किसी अंधेरे को घूर रही थीं।
"अर्जुन," उसने धीमी आवाज़ में कहा,
"मुझे तुमसे कुछ बहुत अहम बात करनी है।"
अर्जुन ने उसके चेहरे पर ध्यान दिया—वो हिचकिचा रही थी,
लेकिन एक बार जो बोलना शुरू किया,
तो आवाज़ में सच्चाई की गहराई साफ़ महसूस हो रही थी।
"मेरा बचपन…
मेरे पापा की मौत…
वो हादसा जो सबको एक दुर्घटना लगा,
वो कहीं का हादसा नहीं था।
मेरे पापा और मिस्टर मेहरा के बीच पुरानी दुश्मनी थी,
और मुझे शक है कि मेरी माँ भी उस राज़ से जुड़ी थी।"
नेहा ने धीरे-धीरे बताया कि कैसे उसके पिता एक छोटे लेकिन ईमानदार कारोबारी थे,
जो मेहरा के अवैध कारोबार में दखल देने लगे थे।
जब उन्होंने मेहरा के भ्रष्ट कामों को उजागर करने की कोशिश की,
तो मेहरा ने बिना कोई दया दिखाए, उन्हें सबक सिखाया।
"मेरे पापा की मौत के बाद,
मेरी माँ ने हमें संभालने की पूरी कोशिश की,
लेकिन उस गहरे डर में जीना आसान नहीं था।"
अर्जुन ने कहा—
"तो तुम्हारा ये ऑफिस आना भी सिर्फ़ काम नहीं था,
बल्कि किसी सच को खोजने की कोशिश?"
नेहा ने धीरे से सिर हिलाया—
"हाँ, और मैं अब भी वो सच पाने के लिए हर खतरे का सामना करने को तैयार हूं।"
वो दोनों उस छत पर खड़े थे,
और नीचे ऑफिस की रोशनी झिलमिला रही थी।
अर्जुन ने महसूस किया कि नेहा अब सिर्फ़ एक साथी नहीं,
बल्कि उस लड़ाई की सबसे बड़ी वजह भी है।
अध्याय 10 – सच की जड़ें (भाग 5)
रात के सन्नाटे में, अर्जुन अपने छोटे से कमरे में बैठा था।
कमरे की एक कोने में उसके लैपटॉप की स्क्रीन चमक रही थी,
और उसकी आंखें थकी हुई लेकिन जिज्ञासु थीं।
सारा दिन जो कुछ भी हुआ था, वो उसके दिमाग में बार-बार घूम रहा था।
अर्जुन ने गोदाम की उस पुरानी वीडियो फुटेज को फिर से देखा,
जहां उसने मेहरा को देखा था, उस लोहे की ब्रीफकेस के साथ।
उसने ध्यान से वीडियो बढ़ाई—
सामने वाले पोर्ट का नाम चमक रहा था—"कोलकाता पोर्ट"।
"कोलकाता पोर्ट…", अर्जुन ने धीमे से कहा।
यहां से क्या शिपमेंट निकला?
फिर उसने अपने पुराने ऑफिस फाइलों में छानबीन शुरू की।
कुछ पुराने मेल्स, शिपमेंट के रिकॉर्ड, और मेहरा की कंपनी से जुड़ी फाइनेंशियल रिपोर्ट्स।
कई रिपोर्ट्स में संदिग्ध ट्रांजैक्शन थे—
रात के समय किए गए बड़े लेन-देन, जिनका कोई स्पष्ट कारण नहीं था।
उसने नोटबंदी की तरह काम करते हुए, कागजों पर कुछ बातें लिखीं—
"कोलकाता पोर्ट"
"शिपमेंट नंबर 7852"
"कोड नेम: La Muerte"
"मिस्टर मेहरा"
फिर उसने एक और फुटेज देखी, जो एक पुराने बंदरगाह की थी,
जहां कुछ संदिग्ध कंटेनर लदे जा रहे थे।
अर्जुन ने उस कंटेनर की संख्या नोट की—
और तुरंत इंटरनेट पर उस नंबर की खोज शुरू की।
अर्जुन के लिए ये सब केवल आंकड़े नहीं थे,
बल्कि उस जाल की जड़ें थीं,
जिसमें वह और नेहा फंसे हुए थे।
रात के लगभग एक बजे, अर्जुन का मोबाइल बजा।
नेहा थी।
"क्या मिला?" उसने फुसफुसाते हुए पूछा।
"कुछ… पर ये ज्यादा खतरनाक लग रहा है। मेहरा सिर्फ एक बिजनेसमैन नहीं, वो अंडरवर्ल्ड से भी जुड़ा है।
और ये शिपमेंट… शायद हथियारों का कारोबार हो।"
अर्जुन ने फैसला किया कि अगले दिन ये सब सबूत नेहा और पुलिस दोनों को दिखाएगा।
पर उसका दिल डर रहा था—
क्योंकि वो जानता था कि जब सच सामने आएगा,
तो उस सच को दबाने के लिए लोग कुछ भी कर सकते हैं।
अगले दिन, ऑफिस पहुंचते ही उसने नेहा को बुलाया।
दोनों ने मिलकर फाइलें देखीं, वीडियो फुटेज पर चर्चा की,
और तय किया कि अगले कदम सोच-समझकर उठाएंगे।
अर्जुन के मन में एक सवाल गूंज रहा था—
"क्या मैं इस लड़ाई के लिए तैयार हूँ?
क्या मैं सच के लिए अपने और नेहा की ज़िंदगी जोखिम में डाल पाऊंगा?"
अध्याय 10 – सच की जड़ें (भाग 6)
सुबह की धूप धीरे-धीरे ऑफिस की खिड़कियों से अंदर आ रही थी,
लेकिन अर्जुन के मन में अंधेरा घना था।
पिछली रात की खोज ने उसकी दुनिया हिला दी थी।
कंप्यूटर स्क्रीन पर खुले फाइलों और फुटेज को बार-बार देखते हुए,
वह सोच रहा था कि अगला कदम क्या होगा।
नेहा उससे थोड़ी दूर खड़ी थी,
पर उसकी नज़रें अर्जुन के चेहरे पर टिक गई थीं।
उनकी आंखों में एक अनकही चिंता थी,
जो किसी भी शब्द से बयां नहीं हो पा रही थी।
अर्जुन ने सांस ली और कहा,
“नेहा, आज सबकुछ बदल सकता है। मेहरा को अब पता चल गया है कि मुझे कुछ पता चल गया है।”
नेहा ने गंभीरता से जवाब दिया,
“हां, और अगर वो सामने आ गया तो हमारी ज़िंदगी खतरे में है। लेकिन अब पीछे हटना मुमकिन नहीं।”
दोनों ने अपने दिलों को तैयार किया—
एक लड़ाई जो अब सिर्फ ऑफिस की नहीं, बल्कि ज़िंदगी-मौत की थी।
मिस्टर मेहरा का सामना
ऑफिस का दरवाज़ा खुला और मिस्टर मेहरा अंदर आए।
उनका चेहरा शांत था, पर उनकी आंखों में एक खतरनाक चमक थी।
उन्होंने अर्जुन की तरफ देखा,
और मुस्कुराते हुए कहा,
“अर्जुन, तुम्हें लगता है कि तुम यहाँ कुछ बड़ा खोज रहे हो?”
अर्जुन ने अपनी पूरी हिम्मत जुटाकर जवाब दिया,
“सर, मैं सिर्फ सच जानना चाहता हूँ।”
मेहरा ने ठहाका लगाया,
“सच? सच तो एक ऐसा खेल है जिसमें हर कोई अपनी चाल चल रहा होता है।
और जो ये खेल समझ नहीं पाता, वो जल्दी हार जाता है।”
उनकी आवाज़ में गहरा व्यंग्य था,
जो अर्जुन के दिल पर ठंडे पानी की तरह गिरा।
तेज़ टकराव
अर्जुन ने बिना घबराए कहा,
“सर, जो भी सच हो, उसे दबाया नहीं जा सकता। मैं किसी से नहीं डरता।”
मेहरा ने एक कदम आगे बढ़ाया,
“बहादुरी की तारीफ करता हूँ, पर याद रखना—
बहादुरी के लिए कभी-कभी बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ती है।”
अर्जुन ने उसकी बात को चुनौती देते हुए कहा,
“अगर कीमत चुकानी पड़े, तो मैं तैयार हूँ।”
उस वक्त मेहरा के चेहरे पर एक खतरनाक मुस्कान आई,
और वो धीरे से बोला,
“देखो, अर्जुन, ये खेल बड़ा खतरनाक है।
तुम्हें पता नहीं कि तुम्हारी हर चाल पर मेरी नजर है।”
अफवाहें और धमकियां
उस दिन ऑफिस में अर्जुन के खिलाफ अजीब-सी अफवाहें फैलने लगीं।
कुछ लोग कहने लगे कि वो कंपनी की गुप्त जानकारियां चुराने की कोशिश कर रहा है।
कुछ ने उसे चेतावनी दी कि वह अपनी हद में रहे।
नेहा ने उसकी तरफ देखा,
“तुम अकेले नहीं हो, अर्जुन। मैं तुम्हारे साथ हूँ।”
अर्जुन ने सर हिलाया,
“लेकिन ये लड़ाई… अकेले लड़नी होगी।”
आखिरी पल का सस्पेंस
दिन के अंत में, जब सभी लोग ऑफिस से जा रहे थे,
अर्जुन की टेबल पर एक सफेद लिफाफा रखा था।
उस पर कोई नाम नहीं था, पर अंदर एक तस्वीर थी—
उसका और नेहा का, दोनों की एक साथ एक पुरानी याद।
और उसके साथ एक नोट—
"सावधान रहो, अर्जुन। हर कदम पर तुम्हारा इंतजार किया जा रहा है।"
अर्जुन ने लिफाफा देखा और ठंडक महसूस की।
उसने बाहर देखा—कोई नजर नहीं आया।
पर उसकी सोच में एक सवाल घूम रहा था—
"क्या सच की इस लड़ाई में, मैं हार जाऊंगा?"
अध्याय 11 – भरोसे की दरार (भाग 1)
रात ढल चुकी थी।
अर्जुन अपने कमरे की खिड़की से बाहर देख रहा था।
सड़क पर छिटपुट स्ट्रीटलाइट्स की रोशनी फैल रही थी,
पर उसके भीतर की अंधकार कहीं ज्यादा गहरा था।
नेहा ने कई बार फोन मिलाया,
पर उसने रिसीव नहीं किया।
वो जानता था, अब सिर्फ उसके और नेहा के बीच नहीं,
बल्कि सच और झूठ के बीच भी दीवार खड़ी हो रही थी।
"क्या मैं इस दीवार को गिरा पाऊंगा?"
उसने मन ही मन सोचा।
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ऑफिस का बदलता माहौल
अगली सुबह ऑफिस पहुँचा तो सबकी निगाहें बदली हुई थीं।
कुछ लोग अब उससे कतराने लगे थे।
कुछ फुसफुसाकर बातें कर रहे थे।
फाइलें उसकी डेस्क से हटाई जा रही थीं,
और मीटिंग रूम में उसके नाम का जिक्र तक नहीं था।
नेहा ने उसे रोका,
“अर्जुन, ये सब क्या हो रहा है? तुम चुप क्यों हो?”
अर्जुन ने बिना उसकी आंखों में देखे कहा,
“कभी-कभी चुप्पी भी हथियार होती है।”
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मेहरा की चालबाज़ी
दोपहर में, मिस्टर मेहरा ने सभी को कॉन्फ्रेंस रूम में बुलाया।
उन्होंने मुस्कुराकर कहा,
“दोस्तों, हमारी कंपनी के खिलाफ कुछ गलतफहमियां फैल रही हैं।
पर हम सच्चाई जानते हैं—हम पारदर्शी हैं।
लेकिन कुछ लोग हमारे बीच फूट डालने की कोशिश कर रहे हैं।”
उनकी नज़रें सीधे अर्जुन पर ठहरीं।
एक पल को पूरा कमरा शांत हो गया।
"वो सीधा नाम क्यों नहीं लेता?" अर्जुन ने सोचा।
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भरोसे पर पहला वार
उस शाम नेहा ने अर्जुन से कहा,
“अर्जुन, तुम मुझसे कुछ छिपा रहे हो।
तुम्हें पता है ना, इस तरह से हम दोनों ही फंस सकते हैं?”
अर्जुन ने गहरी सांस ली,
“नेहा, मैं तुम्हें बचाना चाहता हूँ।
कुछ बातें ऐसी हैं जो अभी बताने का सही वक्त नहीं।”
नेहा की आंखों में नमी थी,
“लेकिन अर्जुन… अगर भरोसा ही नहीं रहा,
तो हम बचेंगे कैसे?”
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छिपा हुआ खतरा
रात को अर्जुन के दरवाजे के नीचे एक और लिफाफा आया।
इस बार उसमें सिर्फ एक लाइन थी—
"नेहा पर भरोसा मत करो।"
अर्जुन ने उस कागज को मोड़ा,
पर उसके दिल में पहला शक का बीज बो दिया गया था।
अध्याय 11 – भरोसे की दरार (भाग 2)
रात काफी देर तक नींद नहीं आई।
अर्जुन बिस्तर पर लेटा हुआ छत को घूर रहा था।
उस कागज की एक पंक्ति बार-बार उसकी आंखों के सामने घूम रही थी—
"नेहा पर भरोसा मत करो।"
वो सोच रहा था,
"कौन है जो मुझे ये बातें भेज रहा है?
और क्यों नेहा का नाम ले रहा है?
क्या नेहा वाकई कुछ छिपा रही है?”
पर उसके दिल का एक कोना यह भी कह रहा था—
"नेहा वो नहीं हो सकती। उसने हमेशा मेरा साथ दिया है।"
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पुराने रिकॉर्ड्स का सच
अगले दिन ऑफिस में अर्जुन ने मौका पाकर कंपनी के पुराने प्रोजेक्ट्स का रिकॉर्ड खंगालना शुरू किया।
एक पुरानी फाइल मिली—"प्रोजेक्ट अहाना"।
इसमें मेहरा का नाम था और एक फोटो में नेहा भी खड़ी थी।
फाइल की तारीख तीन साल पुरानी थी।
"नेहा इस प्रोजेक्ट में क्या कर रही थी?
क्यों उसने कभी इसका जिक्र नहीं किया?"
फाइल के पन्नों में कुछ अजीब ट्रांजैक्शन थे—
विदेशी खातों में पैसे ट्रांसफर हुए थे।
रिपोर्ट्स के हिसाब से यह प्रोजेक्ट कभी पूरा नहीं हुआ,
लेकिन पैसे गायब हो गए।
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नेहा से सामना
उस शाम अर्जुन ने नेहा को कॉफी शॉप बुलाया।
वो शांत थी, पर उसकी आंखों में सवाल थे।
“अर्जुन, तुम ऐसे क्यों बर्ताव कर रहे हो?
तुम्हारा व्यवहार बदल गया है।”
अर्जुन ने सीधे कहा,
“नेहा, मुझे बताओ, तुम ‘प्रोजेक्ट अहाना’ में क्या कर रही थीं?”
नेहा चौंक गई।
उसने तुरंत नज़रें चुराईं।
“तुम्हें ये फाइल कहां से मिली?”
“ये मत पूछो। बस सच बताओ।”
नेहा ने गहरी सांस ली और कहा,
“वो प्रोजेक्ट… मेहरा का सबसे बड़ा खेल था।
मैं उस वक्त नई थी, मुझे लगा सब वैध है।
लेकिन जब मुझे पता चला, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।”
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संदेह और दूरी
अर्जुन ने उसकी आंखों में देखा,
“तो तुमने ये सब छुपाया क्यों?”
नेहा के स्वर में दर्द था,
“क्योंकि मैं डरी हुई थी।
अगर मैं सच बोलती, तो मेरी ज़िंदगी बर्बाद हो जाती।”
अर्जुन ने चुप रहना बेहतर समझा।
उसके मन में शक और मोह दोनों का संग्राम चल रहा था।
"क्या ये वही नेहा है जिस पर मैंने आंख मूंदकर भरोसा किया?"
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मेहरा की चाल और बढ़ी
अगले दिन ऑफिस में अचानक नेहा को एक खास प्रोजेक्ट का हेड बना दिया गया।
पूरी कंपनी के सामने मेहरा ने कहा,
“नेहा पर मुझे पूरा भरोसा है।
ये प्रोजेक्ट हमारी कंपनी का भविष्य बदल देगा।”
अर्जुन ने दूर से यह सब देखा।
"क्या ये संयोग है, या मेहरा उसे अपने खेल में और गहराई से खींच रहा है?"
---
रात का फ़ैसला
उस रात अर्जुन अकेला बैठा था।
उसने डायरी खोली और लिखा—
"अगर मुझे सच जानना है,
तो अब भरोसे की परीक्षा लेनी होगी।
या तो नेहा सब कुछ साफ कर देगी,
या फिर ये खेल मुझे निगल जाएगा।"
वो जानता था—अब अगला कदम ही उसके और नेहा के रिश्ते का भविष्य तय करेगा।
—
अध्याय 11 – भरोसे की दरार (भाग 3 और 4)
रात गहरी थी। हवा में हल्की ठंडक और भारीपन दोनों थे।
अर्जुन अपने कमरे में बैठा था। मेज पर बिखरी फाइलें, लिफाफे, और कुछ अधूरी चाय—सब उसकी बेचैनी के गवाह बन गए थे।
उसके मन में सवालों का तूफ़ान था।
"क्या नेहा ने सच में कुछ छुपाया है, या ये सब मेहरा की चाल है?
अगर ये चाल है तो इतनी सफ़ाई से खेला गया है कि भरोसा भी टूट जाए और सच्चाई भी धुंधली पड़ जाए।"
---
पहला बड़ा सामना
सुबह ऑफिस पहुँचा तो माहौल अजीब तरह से खामोश था।
लोग नज़रें चुराकर बात कर रहे थे।
फिर अचानक मीटिंग रूम में मेहरा ने सबको बुलाया।
कमरे में नेहा भी थी।
मेहरा ने मुस्कुराकर कहा,
“दोस्तों, आज हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि का दिन है।
नेहा ने ‘फ़्यूचर ग्रिड’ प्रोजेक्ट के लिए इंटरनेशनल फंडिंग हासिल की है।
इस काम के लिए मैं इन्हें प्रोजेक्ट डायरेक्टर नियुक्त कर रहा हूँ।”
कमरे में तालियां बजीं।
पर अर्जुन का दिल धक से रह गया।
"क्या ये वही प्रोजेक्ट नहीं जिसके फंड्स तीन साल पहले गायब हुए थे?
क्या नेहा फिर उसी दलदल में जा रही है?"
नेहा की नज़रें अर्जुन से टकराईं।
उसमें अपराधबोध था, या कुछ और—समझ नहीं आया।
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भरोसे की पहली दरार
मीटिंग खत्म होते ही अर्जुन ने नेहा को रोका।
“नेहा, तुम ये सब क्यों कर रही हो?
क्या तुम्हें पता नहीं ये प्रोजेक्ट पहले भी घोटाले से जुड़ा था?”
नेहा ने धीरे से कहा,
“अर्जुन, ये प्रोजेक्ट पहले जैसा नहीं है।
इस बार सब वैध है।
और हाँ… ये मेरे लिए एक मौका है—अपने पुराने गुनाह धोने का।”
अर्जुन ने उसका हाथ पकड़ा,
“लेकिन तुम ये सब मेहरा के साथ क्यों कर रही हो?
क्या तुम उस पर भरोसा करती हो?”
नेहा की आंखें भर आईं,
“कभी-कभी हमें दुश्मन के साथ भी चलना पड़ता है,
ताकि उसके खेल को खत्म कर सकें।”
पर अर्जुन को यह जवाब अधूरा लगा।
"क्या ये सच है, या फिर नया खेल?"
---
मेहरा का सीधा वार
उस शाम अर्जुन को एक ईमेल मिला—
“प्रोजेक्ट फ़्यूचर ग्रिड – Internal Security Alert”
ईमेल में लिखा था,
“कृपया अपने विभाग से संबंधित सभी फाइलें नेहा को सौंप दें।
अब से सारी रिपोर्टिंग उनके अंडर होगी।”
ये सीधा वार था।
अर्जुन को किनारे लगाया जा रहा था।
"क्या नेहा जानबूझकर मुझे अलग कर रही है,
या ये सब मेहरा की चाल है जिससे हम दोनों के बीच दरार पड़े?"
---
नेहा का राज़
रात को अर्जुन ने नेहा को कॉल किया।
“नेहा, हम मिल सकते हैं? अभी।”
नेहा कुछ पल चुप रही।
“ठीक है, पार्क में मिलो।”
पार्क सुनसान था।
चाँदनी हल्की थी।
नेहा आई, चेहरा थका हुआ था।
“अर्जुन, मुझे तुमसे एक बात कहनी है,” उसने धीमे स्वर में कहा।
“तीन साल पहले मैं इस प्रोजेक्ट का हिस्सा थी।
मुझे पता था कि पैसे गलत जगह जा रहे हैं,
लेकिन मैं नया थी, डरती थी, चुप रही।
उस गलती की सज़ा मैं आज तक भुगत रही हूँ।”
अर्जुन ने पूछा,
“तो अब?
क्या तुम फिर वही गलती कर रही हो?”
नेहा ने सिर हिलाया,
“नहीं।
इस बार मैं इस प्रोजेक्ट का इस्तेमाल करूँगी—
मेहरा के असली सबूत पकड़ने के लिए।”
---
टूटन का पल
अर्जुन ने गुस्से और दर्द से कहा,
“तो ये सब तुमने मुझसे क्यों छिपाया?
अगर हम एक थे,
तो ये रहस्य क्यों?”
नेहा की आंखों में आँसू आ गए।
“क्योंकि तुम पर भी मुझे भरोसा नहीं रहा था, अर्जुन।
तुम बदल गए थे।”
ये सुनकर अर्जुन के दिल में जैसे कोई चीज़ टूट गई।
वो चुपचाप वहाँ से चला गया।
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खुला खेल
अगले दिन मेहरा ने एक बड़ी मीटिंग बुलाई।
इस बार पूरे बोर्ड के सामने उसने कहा,
“हमारे संगठन में कुछ लोग हमारी प्रगति रोकना चाहते हैं।
उनके नाम जल्द सामने आएंगे।”
स्क्रीन पर अचानक अर्जुन की तस्वीर उभर आई।
कमरा सन्न रह गया।
"तो ये था मेहरा का असली खेल।
पहले भरोसा तोड़ो, फिर इल्ज़ाम लगाओ।"
नेहा की आंखें फटी रह गईं।
वो कुछ कहना चाहती थी,
पर मेहरा ने उसकी ओर देखा और मुस्कुराया—
मानो कह रहा हो, “अब तुम भी मेरे खेल में फंस चुकी हो।”
---
अंतिम दृश्य – बढ़ता अंधकार
रात को अर्जुन ने आखिरी बार अपनी डायरी में लिखा,
"अब ये सिर्फ साज़िश नहीं रही।
ये जंग है।
और इस जंग में भरोसा सबसे बड़ा हथियार भी है, और सबसे बड़ी कमजोरी भी।"
वो खिड़की से बाहर देख रहा था।
सड़क खाली थी,
लेकिन उसे यकीन था—
किसी की नज़र उस पर है।
—
अध्याय 12 – सच का पहला दरवाज़ा (भाग 1)
रात गहरी थी।
ऑफिस बिल्डिंग के सामने वाले पेड़ के नीचे खड़ा अर्जुन दूर तक फैली सड़क को देख रहा था।
बारिश की बूंदें गिरना शुरू हो चुकी थीं।
वो कुछ देर तक भीगा खड़ा रहा, जैसे अपने गुस्से और धोखे को धोना चाहता हो।
"अब खेल खत्म नहीं होगा, मेहरा।
ये बस शुरुआत है।"
उसने अपने फोन से कुछ पुराने कॉन्टैक्ट्स खंगालने शुरू किए।
एक नाम उभरा—राघव, उसका कॉलेज का दोस्त, जो अब साइबर सेल में था।
---
गुप्त मुलाक़ात
अगले दिन, कैफ़े की भीड़ में एक कोना चुनकर अर्जुन और राघव मिले।
राघव ने हंसते हुए कहा,
“तीन साल बाद मुलाक़ात भी ऐसे हो रही है जैसे कोई मिशन हो।”
अर्जुन ने गंभीर स्वर में कहा,
“राघव, मुझे तुम्हारी मदद चाहिए।
मेहरा और उसके प्रोजेक्ट में कुछ गड़बड़ है।
लेकिन इस बार वो मुझे फंसाने की कोशिश कर रहा है।”
राघव ने सिर हिलाया,
“तुम्हारे पास कोई ठोस सबूत है?”
अर्जुन ने अपनी फाइल बैग से निकाली,
“ये कुछ ईमेल ट्रेल्स हैं,
लेकिन असली खेल ‘फ़्यूचर ग्रिड’ के फंड ट्रांसफ़र्स में छुपा है।
मुझे उसकी तह तक पहुंचना है।”
राघव ने कहा,
“तुम्हें पता है ये खतरनाक है?
मेहरा के पीछे सिर्फ़ पैसा नहीं, कुछ और भी है।”
---
नेहा की उलझन
उसी शाम नेहा अकेली ऑफिस में बैठी थी।
उसके सामने ढेरों फाइलें, रिपोर्ट्स और मेहरा के दिए गए नए कॉन्ट्रैक्ट्स थे।
पर उसकी आंखें बार-बार अर्जुन की ओर जाती यादों पर ठहर रही थीं।
"क्या मैंने गलत किया?
क्या अर्जुन को सब कुछ पहले ही बता देना चाहिए था?
पर अगर वो मानता नहीं,
तो क्या वो भी दुश्मनों के निशाने पर नहीं आ जाता?"
उसने अपने लैपटॉप पर छुपा हुआ एक फ़ोल्डर खोला—
उसमें पुरानी वीडियो क्लिप्स थीं:
मेहरा और कुछ अज्ञात लोगों की मीटिंग्स,
जिनमें ‘फ़्यूचर ग्रिड’ के नाम पर फंड्स को विदेश में शेल कंपनियों में भेजा जा रहा था।
नेहा ने एक वीडियो को ज़ूम किया—
वहाँ एक और चेहरा दिखा।
वो अर्जुन के ही विभाग का वरिष्ठ अधिकारी था।
"तो खेल में सिर्फ़ मेहरा नहीं,
हमारे अपने भी शामिल हैं!"
---
टकराव की पूर्व संध्या
रात के करीब 2 बजे अर्जुन अपने लैपटॉप पर कोड्स और लॉगिन ट्रेल्स खंगाल रहा था।
राघव ने उसे कुछ फेक आईडी दी थीं जिससे वो मेहरा के इंटरनल सर्वर में घुस सके।
लेकिन जैसे ही वो एक फ़ाइल खोलने लगा,
एक पॉप-अप आया:
“Access Denied – Unauthorized Entry Detected”
और कुछ ही सेकंड बाद उसका फ़ोन बजा।
अनजान नंबर था।
“अर्जुन जी, रात को देर तक जाग रहे हैं?
इतना शौक है हमारे फाइल्स देखने का?”
वो मेहरा की आवाज़ थी।
अर्जुन चुप रहा।
मेहरा ने कहा,
“खेल खेलने चले हो, पर मोहरे मैं हूं।
याद रखना—तुम्हारे पास खोने के लिए बहुत है, और मेरे पास छिपाने के लिए कुछ नहीं।”
कॉल कट गई।
अर्जुन की सांसें तेज़ हो गईं।
"अब वक्त नहीं है डरने का।
अब ये व्यक्तिगत हो चुका है।"
---
नेहा और अर्जुन का आमना-सामना
अगली सुबह नेहा अर्जुन के घर पहुँची।
उसकी आंखों में नींद नहीं थी।
“अर्जुन, हमें बात करनी होगी,” उसने कहा।
अर्जुन ने बिना देखे कहा,
“क्या अब भी कोई बात बाकी है, नेहा?
या वो भी मेहरा के मेल से आएगी?”
नेहा ने गहरी सांस ली।
“तुम्हें लगता है मैं उसके साथ हूं।
पर सच ये है—मैं उसी खेल को उल्टा करने आई हूं।
मेरे पास उसके काले कारनामों के कुछ सबूत हैं,
पर अकेले मेरे बस की बात नहीं।”
अर्जुन ने पहली बार उसकी आंखों में देखा।
वहाँ सच्चाई थी, और दर्द भी।
“तो ये सब तुमने मुझसे क्यों छुपाया?”
“क्योंकि भरोसा टूटा हुआ था।
पर अब हमें साथ होना पड़ेगा, अर्जुन।
वरना ये लड़ाई हम दोनों हार जाएंगे।”
---
सच का पहला दरवाज़ा खुलता है
राघव से मिली फाइल्स और नेहा की वीडियो क्लिप्स को जोड़कर अर्जुन ने पहला पैटर्न खोज लिया।
एक गुप्त बैंक खाता—जिसका इस्तेमाल तीन साल पहले भी हुआ था—
वही खाता अब फिर से एक्टिव था।
खाते के मालिक का नाम देखकर अर्जुन का दिल बैठ गया।
वो नाम उसके ही ऑफिस के एक सबसे भरोसेमंद सीनियर का था।
"तो ये खेल मेहरा का अकेले का नहीं,
ये पूरी चेन है…
और मैं इस चेन की अगली कड़ी बनने वाला था!”
अध्याय 12 – सच का पहला दरवाज़ा (भाग 2)
बारिश अब भी रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
शहर की सड़कों पर पानी की बूँदें चमक रही थीं, जैसे हर मोड़ पर कोई रहस्य छुपा हो।
अर्जुन अपने कमरे में बैठा नेहा की तरफ़ देख रहा था।
दोनों के बीच एक अनकही चुप्पी थी—
न गुस्सा, न मोहब्बत, बस एक जिम्मेदारी का बोझ।
"नेहा," अर्जुन ने कहा,
"अब हमें सीधे-सपाट तरीके से खेल नहीं खेलना चाहिए।
मेहरा के पीछे जो नेटवर्क है, वो खतरनाक है।
हमें पहले उसके सबसे कमज़ोर कड़ी को ढूंढना होगा।"
नेहा ने अपनी फाइल्स खोलीं।
“ये देखो, ये वीडियो और ईमेल्स में तीन नाम बार-बार आ रहे हैं—
मिस्टर मेहरा, संदीप त्रिपाठी (वो सीनियर ऑफिसर) और… एक विदेशी क्लाइंट जिसका नाम छुपाया गया है।
ये वही अकाउंट है जो तुमने ट्रेस किया था।”
अर्जुन ने भौंहें चढ़ाईं।
“मतलब त्रिपाठी भी मिला हुआ है।
और वो मेरा मेंटर था।”
---
पहली गुप्त योजना
राघव ने उसी शाम एक एन्क्रिप्टेड मैसेज भेजा—
"कल रात 11 बजे पुराने वेयरहाउस एरिया में मिलो।
तुम्हें कुछ दिखाना है।"
अर्जुन और नेहा ने तय किया कि वो दोनों साथ जाएंगे।
रात गहरी थी, हवा में ठंडक और डर दोनों थे।
जैसे ही वो वेयरहाउस के अंदर पहुंचे,
राघव ने एक लैपटॉप खोला और कहा,
“ये देखो।
ये वही अकाउंट है,
लेकिन अब ये पैसे सिर्फ़ एक प्रोजेक्ट के लिए नहीं,
बल्कि एक पूरे नेटवर्क को फंड कर रहा है।
और ये नेटवर्क ‘फ़्यूचर ग्रिड’ के नाम पर ग़ैर-कानूनी डाटा ट्रांसफ़र और हेराफ़ेरी कर रहा है।”
नेहा ने सांस खींची,
“मतलब इस प्रोजेक्ट का असली मकसद कंपनी के डाटा को बेचकर करोड़ों कमाना है?”
राघव ने सिर हिलाया,
“और तुम्हारे नाम से बने डॉक्यूमेंट्स साबित करेंगे कि ये सब तुमने किया।”
अर्जुन का दिल जोर से धड़कने लगा।
“तो ये सिर्फ़ करप्शन नहीं,
ये पूरा जाल है—जहाँ मुझे बलि का बकरा बनाया जा रहा है।”
---
नेहा का सच और डर
राघव फाइल्स कॉपी कर रहा था,
तब नेहा बाहर बालकनी में खड़ी थी।
अर्जुन उसके पास आया।
“नेहा, तुम ये सब कब से जानती हो?”
नेहा की आंखों में आँसू भर आए।
“दो साल से…
जब मैंने इस कंपनी में जॉइन किया,
तब सिर्फ़ एक इंटर्न थी।
लेकिन मेरी माँ ने मुझे कहा था कि मुझे सच्चाई जाननी है।
मेरे पापा की मौत के पीछे मेहरा का हाथ था।
तभी से मैं यहाँ हूँ,
और अब तक सबूत इकट्ठा कर रही थी।”
अर्जुन चुप रहा।
वो जानता था कि नेहा के इरादे साफ़ थे,
लेकिन उसके तरीक़े ने रिश्ते को तोड़ दिया।
नेहा ने कहा,
“अगर तुम मेरी जगह होते,
तो क्या ये सब पहले ही बता देते?”
अर्जुन ने गहरी सांस ली।
“शायद…
शायद हाँ।
क्योंकि भरोसा हर जंग की पहली ढाल होती है।”
---
खतरे का पहला संकेत
अचानक राघव ने कहा,
“हमें निकलना होगा!
सिस्टम पर ट्रैकिंग एक्टिव हो गई है।
कोई हमारे लोकेशन पर नज़र रख रहा है।”
तीनों ने फटाफट लैपटॉप बंद किया और वेयरहाउस से बाहर निकले।
लेकिन जैसे ही गाड़ी स्टार्ट हुई,
एक ब्लैक SUV ने उनका रास्ता रोक दिया।
चार नकाबपोश लोग उतरे।
उनमें से एक ने कहा,
“काफी रात हो गई है अर्जुन जी।
कहीं रास्ता तो नहीं भटक गए?”
नेहा ने अर्जुन का हाथ पकड़ लिया।
राघव धीरे-धीरे बैकगियर डालते हुए बोला,
“ये लोग सीधी धमकी देने आए हैं,
अभी लड़ना नहीं है—बचना है।”
SUV ने पीछा किया,
पर राघव ने पुराने रेलवे अंडरपास से गाड़ी निकालकर उन्हें चकमा दे दिया।
---
नया मोड़ – नया इरादा
घर पहुंचकर अर्जुन ने कहा,
“अब ये सिर्फ़ फाइल का खेल नहीं,
अब ये जंग बन चुकी है।
और इस बार हमें भी चालें चलनी होंगी।”
नेहा ने उसकी ओर देखा।
“क्या तुम सच में मेरे साथ हो, अर्जुन?”
अर्जुन ने पहली बार मजबूती से कहा,
“हाँ।
क्योंकि इस लड़ाई में अगर हम हार गए,
तो सिर्फ़ करियर नहीं,
पूरी ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी।”
—
अध्याय 12 – सच का पहला दरवाज़ा (भाग 3)
रात के दो बज रहे थे।
बारिश थम चुकी थी लेकिन सड़कों पर अभी भी पानी की परछाइयाँ नाच रही थीं।
अर्जुन अपनी मेज पर बैठा लैपटॉप की स्क्रीन घूर रहा था।
राघव ने जो डेटा दिया था, उसमें छिपे राज़ एक-एक कर सामने आ रहे थे।
नेहा खिड़की के पास खड़ी थी, हाथ में चाय का कप, लेकिन उसकी निगाहें कहीं और थीं।
"तुम अब भी नाराज़ हो?" उसने धीमे स्वर में पूछा।
अर्जुन ने बिना स्क्रीन से नज़र हटाए कहा,
"नाराज़ नहीं नेहा… बस सोच रहा हूँ कि हम दोनों ने कितना खो दिया इन सब खेलों में।"
नेहा ने हल्की मुस्कान दी,
"खोया बहुत है अर्जुन… पर पाया क्या?
सच? या फिर सिर्फ़ एक और धोखा?"
---
नेहा का अतीत – अनकही परत
अचानक नेहा ने बोलना शुरू किया—
"जब मैं बारह साल की थी, पापा मुझे हर रविवार पार्क ले जाते थे।
वो कहते थे—‘नेहा, इस दुनिया में सबसे ताक़तवर चीज़ पैसा नहीं, सच है।’
और एक दिन वो सच के लिए खड़े हुए…
पर वो दिन उनकी आख़िरी सांस का दिन भी बन गया।"
अर्जुन ने पहली बार नेहा के चेहरे पर वो मासूमियत देखी जो शायद सालों से किसी डर में कैद थी।
"तुम्हारी माँ… वो क्या कहती थीं?"
नेहा की आँखें भर आईं,
"माँ हमेशा कहती थीं—‘बेटा, डरना मत।
पर याद रखना, सच बोलने से पहले सबूत ज़रूरी है।’
शायद इसी वजह से मैं ये खेल खेलती रही।"
अर्जुन ने महसूस किया कि ये सिर्फ़ एक ऑफिस स्कैम नहीं,
ये नेहा की ज़िंदगी का अधूरा बदला था।
---
पहली चाल की तैयारी
राघव ने अगले दिन एक प्लान भेजा।
"हमें मेहरा की ईमेल सर्वर से सीधी एक्सेस चाहिए।
लेकिन ये काम आसान नहीं होगा।
हमें भीतर से कोई मददगार चाहिए।"
नेहा ने कहा,
"संदीप त्रिपाठी के पीए—अंकित—वो हमेशा कुछ न कुछ गलत होते देखता है,
पर वो डरता है बोलने से।
शायद वो हमारी मदद कर सकता है।"
अर्जुन ने सिर हिलाया।
"ठीक है।
उसे फँसाना नहीं है,
उसे यक़ीन दिलाना है कि ये लड़ाई उसकी भी है।"
---
गुप्त मुलाक़ात
शाम को एक कॉफी हाउस में मुलाक़ात तय हुई।
अर्जुन, नेहा और अंकित आम ग्राहक की तरह बैठे।
अंकित बार-बार चारों तरफ़ देख रहा था।
"आप लोग समझ नहीं रहे," अंकित ने फुसफुसाकर कहा,
"ये खेल बहुत ऊपर तक जाता है।
मेहरा के पीछे सिर्फ़ बिज़नेस नहीं,
पॉलिटिक्स भी जुड़ी है।
अगर मैंने कुछ बोला तो… मेरी माँ तक सुरक्षित नहीं रहेगी।"
नेहा ने उसकी आँखों में सीधा देखा,
"और अगर तुम चुप रहे,
तो कितने लोगों का करियर और ज़िंदगी बर्बाद होगी?
क्या तुम्हें चैन आएगा?"
अंकित चुप हो गया।
थोड़ी देर बाद उसने कहा,
"ठीक है।
मैं तुम्हें पासवर्ड और लॉगिन टाइमिंग भेज दूँगा।
लेकिन याद रखना—ये काम एक बार में होना चाहिए।
अगर पकड़े गए तो कोई बचा नहीं पाएगा।"
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रिश्तों का मोड़
वापस लौटते वक्त अर्जुन और नेहा एक ही गाड़ी में थे।
हवा में सन्नाटा था।
नेहा ने कहा,
"अर्जुन, क्या तुम कभी सोचते हो कि अगर ये सब न होता…
तो हम शायद किसी और मोड़ पर होते?"
अर्जुन ने हल्की हँसी दी,
"हाँ, शायद ऑफिस के बाहर कॉफी पीते,
ना कि किसी गुप्त मुलाक़ात में अपनी जान जोखिम में डालते।"
नेहा ने उसकी तरफ़ देखा,
"फिर भी… तुम साथ हो।
क्यों?"
अर्जुन ने गहरी सांस ली,
"क्योंकि मैं जानता हूँ,
ये लड़ाई तुम्हारी नहीं—हमारी है।"
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खतरे की परछाई
रात को अर्जुन के दरवाज़े पर एक लिफ़ाफ़ा आया।
उसमें बस दो लाइनें थीं—
> "बहुत चालाक बन रहे हो।
अगली बार ये चुप्पी सिर्फ़ लिफ़ाफ़े में नहीं,
तुम्हारे घर के बाहर होगी।"
अर्जुन ने मुट्ठी भींची।
उसने नेहा को फ़ोन किया,
"हमें कल ही ऑपरेशन करना होगा।
ये खेल अब और नहीं खिंचेगा।"
---
युद्ध की शुरुआत
सुबह पाँच बजे, तीनों तैयार थे—
राघव सिस्टम सेट कर रहा था,
नेहा पासवर्ड्स लिख रही थी,
और अर्जुन मन ही मन सोच रहा था:
"क्या सचमुच ये सही रास्ता है?
या मैं सिर्फ़ एक और मोहरा बनने जा रहा हूँ?"
बारिश फिर से शुरू हो चुकी थी।
और बाहर कहीं,
कोई उनकी हर चाल पर नज़र रख रहा था।
—
अध्याय 12 – सच का पहला दरवाज़ा (भाग 4)
सुबह अभी पूरी तरह उजली भी नहीं हुई थी।
बारिश की बूंदें खिड़की के शीशों पर ऐसे बह रही थीं जैसे कोई अदृश्य हाथ लगातार उन पर खरोंच खींच रहा हो।
अर्जुन ने अपने हाथों से चेहरा मलते हुए घड़ी देखी—5:07 AM।
नेहा सोफ़े के कोने में बैठी थी, हाथ में नोट्स और पासवर्ड्स की लिस्ट थी, लेकिन उसका चेहरा किसी और ही चिंता में डूबा हुआ था।
"राघव, सब सेट है?" अर्जुन ने लैपटॉप स्क्रीन देखते हुए पूछा।
"हाँ, पर एक दिक्कत है," राघव ने कान में लगे ब्लूटूथ से जवाब दिया।
"मेहरा के सर्वर पर एक्टिविटी लॉग आज रात ही अपडेट हुआ है।
किसी ने कल रात ही लॉगिन करने की कोशिश की थी… हमारे अलावा।"
नेहा ने चौंक कर कहा,
"मतलब कोई और भी इस खेल में है?"
"हाँ," राघव ने गंभीर स्वर में कहा,
"और हो सकता है वो हमसे तेज़ हो।"
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ऑपरेशन नाइटफॉल की शुरुआत
सुबह 6:15 AM, तीनों एक पुरानी इमारत के बेसमेंट में पहुंचे।
वहीं से उन्हें मेहरा के ऑफिस की नेटवर्क लाइन तक रिमोट एक्सेस मिल सकती थी।
राघव ने अपने मॉनिटर सेट किए, नेहा ने फाइल्स चेक कीं,
और अर्जुन ने गहरी सांस लेते हुए कहा,
"एक बार ये शुरू हुआ तो वापस लौटने का कोई रास्ता नहीं बचेगा।"
नेहा ने उसके हाथ पर हाथ रखा,
"हम पहले ही बहुत दूर आ चुके हैं अर्जुन।
अब पीछे हटना हार होगी, और आगे बढ़ना शायद मुक्ति।"
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पहली दीवार – फ़ायरवॉल
राघव ने कोड इनपुट करना शुरू किया।
स्क्रीन पर नीली-हरी लाइनों की बारिश हो रही थी।
"ये मेहरा का फ़ायरवॉल… साधारण नहीं है।
किसी ने इसे हाल ही में अपग्रेड किया है।"
अर्जुन ने पूछा,
"किसी ने? मतलब वो अज्ञात खिलाड़ी?"
"संभव है," राघव ने कहा।
"मगर मैं कोशिश करूंगा कि हमें भीतर का रास्ता मिले।"
घंटे भर बाद—
"गॉट इट!" राघव ने चिल्लाया।
"हम अंदर हैं।"
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दूसरी दीवार – धोखे का डेटा
अंदर जाने के बाद जो पहली फाइलें मिलीं,
वो मेहरा के सामान्य लेन-देन के पेपर्स थे।
लेकिन एक फोल्डर “Project N-17” के नाम से लॉक्ड था।
"यही है," नेहा ने फुसफुसाया।
"मेरे पापा इसी प्रोजेक्ट के विरोध में खड़े हुए थे।"
फोल्डर खोलने के लिए अलग से पासवर्ड चाहिए था।
नेहा ने अपनी पुरानी डायरी से एक नोट निकाला—
उसमें पिता की लिखावट में कुछ अंक और अक्षर थे।
पासवर्ड डाला—
फोल्डर खुल गया।
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सच का पहला झटका
फोल्डर में जो था,
वो किसी भी इंसान को हिला देने के लिए काफी था—
ग़लत सौदे, ज़मीन हड़पने के कागज़ात,
और सबसे बड़ा—
नेहा के पिता की मौत का फाइल।
उस फाइल में लिखा था—
"Case Closed: Road Accident – Manipulated Evidence by S.T."
अर्जुन ने हैरानी से पूछा,
"S.T.? ये कौन?"
नेहा के हाथ कांपने लगे,
"संदीप त्रिपाठी…!
यानी मेहरा का सबसे करीबी आदमी ही इसमें शामिल था!"
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धोखे की गंध
उसी समय राघव ने चेताया,
"अर्जुन! नेटवर्क ट्रैफिक अचानक बढ़ रहा है।
कोई हमारी लोकेशन ट्रेस कर रहा है!"
अर्जुन ने कहा,
"नेहा, फाइल्स कॉपी करो!
राघव, रूट बदलो!
हमें पाँच मिनट में यहां से निकलना होगा।"
नेहा ने जल्दी से हार्ड ड्राइव में सब कुछ सेव किया।
लेकिन जैसे ही वो फाइल ट्रांसफर खत्म हुई,
बेसमेंट का मेन डोर धमाक! से खुला।
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पहली मुठभेड़
चार लोग अंदर आए, काले कपड़ों में।
उनमें से एक ने मास्क हटाया—अंकित!
"तुम… तुमने तो मदद का वादा किया था!" नेहा चिल्लाई।
अंकित ने ठंडी मुस्कान दी,
"वादा? मैंने बस खेल दिखाया।
तुम लोग बस मोहरे थे।
असल खेल कोई और खेल रहा है।"
अर्जुन ने फाइल ड्राइव अपनी जेब में डाली और कहा,
"हम हार नहीं मानेंगे।
ये सच बाहर आएगा।"
अंकित ने सिर हिलाया,
"देखते हैं… अगर तुम जिंदा बचे तो।"
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भागना या लड़ना
राघव ने इमरजेंसी शॉर्टकट खोला—
बेसमेंट की पिछली सीढ़ियाँ।
अर्जुन ने नेहा का हाथ पकड़ा,
"चलो! अभी!"
गोली की आवाज़ गूंजी।
एक बुलेट दीवार से टकराई, चिंगारियां निकलीं।
तीनों भागे, सीढ़ियाँ चढ़े,
और बारिश भरी गलियों में निकल गए।
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वक़्त कम है
गाड़ी में बैठते ही अर्जुन ने ड्राइव शुरू की।
नेहा ने कहा,
"अब क्या?
हमारे पास सबूत हैं, पर दुश्मन भी जाग गया है।"
अर्जुन ने सख़्त स्वर में कहा,
"अब खेल सीधा होगा।
अब हम हमला नहीं, वार करेंगे।"
राघव ने जोड़ा,
"ये फाइलें काफी नहीं हैं।
हमें उनके असली ठिकाने और पॉलिटिकल लिंक की ज़रूरत है।
और वो मिलेगा… मेहरा की पार्टी में।
आज रात।"
नेहा ने पहली बार थोड़ी उम्मीद भरी नज़र से देखा।
"यानी आज रात—
या तो सब कुछ खत्म…
या फिर एक नई शुरुआत।"
अध्याय 13 – नक़ाबपोश रात (भाग 1)
शहर की सड़कों पर शाम का धुंधलका उतर रहा था।
बारिश थम चुकी थी लेकिन हवा में अब भी नमी और बेचैनी थी।
आज रात वो रात थी,
जिसका नाम सुनकर ही अर्जुन का दिल तेज़ धड़क रहा था—
मेहरा की वार्षिक पार्टी।
ये पार्टी सिर्फ़ एक जश्न नहीं,
बल्कि एक नकाब थी—
जहाँ ताली बजाने वाले मेहमानों के बीच,
करोड़ों के सौदे और गुप्त समझौते होते थे।
तैयारी
नेहा शीशे के सामने खड़ी थी।
उसने काले रंग की साड़ी पहनी थी,
जिसकी चमक हल्की रोशनी में और भी गहरी लग रही थी।
उसकी आंखों में डर भी था और दृढ़ता भी।
अर्जुन ने हल्के से मुस्कुराकर कहा,
"आज तुम सचमुच नक़ाबपोश रात की रानी लग रही हो।"
नेहा ने उसकी ओर देखा और धीमे स्वर में कहा,
"कभी सोचा था अर्जुन,
कि एक दिन हम किसी पार्टी में जासूस बनकर जाएंगे?"
अर्जुन ने जवाब दिया,
"ना सोचा था, ना चाहा था।
लेकिन कभी-कभी ज़िंदगी हमें उन रास्तों पर धकेल देती है,
जहाँ हम खुद को पहचान भी नहीं पाते।"
राघव की योजना
गाड़ी में बैठने से पहले राघव ने आख़िरी हिदायत दी—
"पार्टी के अंदर तीन काम करने हैं:
पहला—मेहरा की लैपटॉप चिप निकालनी है।
दूसरा—उसके मेहमानों में जो पॉलिटिकल शख्स होंगे, उनकी रिकॉर्डिंग करनी है।
और तीसरा—बिना शक पैदा किए निकलना है।
अगर इनमें से एक भी फेल हुआ… तो खेल खत्म।"
अर्जुन ने सिर हिलाया,
"फिक्र मत कर राघव।
आज रात हम सिर्फ़ मेहमान नहीं,
इस नक़ाबपोश जश्न के सबसे खतरनाक खिलाड़ी होंगे।"
पार्टी का नज़ारा
मेहरा की हवेली रोशनी से नहा रही थी।
बड़े-बड़े झूमर, विदेशी वाइन, और हर कोने में खड़े सिक्योरिटी गार्ड—
सब कुछ किसी फ़िल्मी सीन जैसा लग रहा था।
मेहमान नकाब पहने हुए थे।
किसी ने सुनहरा, किसी ने काला,
और किसी ने लाल नक़ाब पहना था।
हर चेहरे पर मुस्कान थी,
पर हर आंख में कोई रहस्य छुपा था।
नेहा ने धीरे से अर्जुन का हाथ पकड़ा।
"याद रखना अर्जुन,
यहाँ हर मुस्कान के पीछे एक खंजर है।"
पहली चाल
अर्जुन बार काउंटर की ओर गया।
वहाँ मेहरा खड़ा था,
अपने नक़ाब के बावजूद उसकी चाल-ढाल और घमंड भरी मुस्कान पहचान में आ रही थी।
"अर्जुन!
सोचा नहीं था तुम आज रात आओगे,"
मेहरा ने हाथ मिलाते हुए कहा।
अर्जुन ने नकली मुस्कान दी,
"इतनी बड़ी पार्टी छोड़ दूँ?
कभी नहीं।"
पर उसके मन में एक ही बात थी—
"आज ही तेरा खेल बिगाड़ना है, मेहरा।"
नेहा का मिशन
उधर नेहा एक मेज़ की ओर बढ़ी,
जहाँ मेहरा का लैपटॉप रखा था।
उसके पास सिक्योरिटी खड़ी थी,
पर अंकित भी वहीं था।
अंकित ने उसकी ओर देखा और हल्की मुस्कान दी।
"तुम फिर आईं…
शायद अब भी उम्मीद है कि मैं मदद करूंगा?"
नेहा ने शांत स्वर में कहा,
"उम्मीद नहीं अंकित…
यकीन है।
क्योंकि अगर ये सच सामने नहीं आया,
तो तुम्हारी आत्मा कभी चैन से नहीं जी पाएगी।"
अंकित ने कुछ पल सोचा,
फिर धीरे से बोला,
"पांच मिनट।
बस इतना वक़्त मिलेगा तुम्हें।"
सच की पहली परत
जैसे ही नेहा ने लैपटॉप की चिप निकाली,
अचानक स्क्रीन पर एक वीडियो पॉप-अप हो गया।
उस वीडियो में मेहरा किसी पॉलिटिकल लीडर से हाथ मिला रहा था।
पीछे आवाज़ आ रही थी—
"डील फाइनल।
चुनाव फंडिंग के बदले डेटा एक्सचेंज।"
नेहा का दिल जोर से धड़कने लगा।
"तो यही है असली खेल!
ये सिर्फ़ कंपनी का घोटाला नहीं,
पूरा राजनीतिक षड्यंत्र है।"
खतरे का अहसास
उसी समय अर्जुन ने देखा कि मेहरा की नज़र बार-बार नेहा की ओर जा रही है।
उसके चेहरे पर शक उभर रहा था।
अर्जुन ने जल्दी से नेहा को इशारा किया,
"निकालो… अभी!"
लेकिन इससे पहले कि दोनों बाहर निकल पाते,
मेहरा ने माइक उठाया और कहा—
"दोस्तों!
आज की पार्टी में हमें एक सरप्राइज़ मिला है।
हमारे बीच गद्दार मौजूद है!"
अध्याय 13 – नक़ाबपोश रात (भाग 2)
गद्दार का एलान
मेहरा की भारी आवाज़ पूरे हॉल में गूँज उठी—
"आज की पार्टी सिर्फ़ जश्न नहीं,
बल्कि सच को सामने लाने का दिन भी है।
क्योंकि मुझे पता चला है…
हमारे बीच कोई है जो मेरे खिलाफ सबूत इकट्ठा कर रहा है।"
पूरे हॉल में सन्नाटा छा गया।
संगीत रुक गया,
नक़ाब पहने मेहमान एक-दूसरे की ओर देखने लगे।
नेहा का दिल जोर से धड़क रहा था।
अर्जुन ने उसके हाथ को हल्के से दबाया—
"शांत रहो। बस मेरी आंखों में देखो।"
शक की परछाई
मेहरा धीरे-धीरे भीड़ के बीच चला।
उसकी आँखें हर नकाब के पार झाँकने की कोशिश कर रही थीं।
वो रुक-रुक कर मेहमानों से सवाल करता,
लेकिन जवाब सिर्फ़ मुस्कानें थीं।
फिर उसकी नज़र नेहा पर ठहर गई।
नेहा ने नकाब पहना था,
लेकिन उसकी बेचैनी उसकी साँसों से साफ़ महसूस हो रही थी।
"और ये… कौन हैं?"
मेहरा ने नेहा की ओर इशारा करते हुए कहा।
अर्जुन तुरंत आगे बढ़ा,
"मेरे साथ आई हैं।
एक पुरानी दोस्त… तुम्हारे लिए खतरा कैसे हो सकती हैं?"
मेहरा ने हल्की मुस्कान दी,
"देखते हैं…"
अंकित का मोड़
इसी बीच अंकित सामने आया।
सबकी निगाहें उस पर टिक गईं।
उसने धीमे स्वर में कहा,
"सर, शायद आप सही कह रहे हैं।
यहाँ कोई गद्दार मौजूद है।"
नेहा और अर्जुन दोनों चौंक पड़े।
नेहा के चेहरे पर अविश्वास था—
"अंकित… तुम?"
अंकित ने उसकी ओर देखा,
फिर सबके सामने बोला—
"गद्दार… मैं हूँ।"
पूरा हॉल हैरान।
मेहरा ने आँखें सिकोड़ते हुए कहा,
"तुम? तुम मेरे सबसे भरोसेमंद लोगों में थे।"
अंकित ने गहरी साँस ली,
"शायद कभी था।
लेकिन जब देखा कि तुम्हारे लालच ने कितनी ज़िंदगियाँ बर्बाद कर दीं,
तो मुझे समझ आया—
तेरे लिए काम करना मतलब अपनी आत्मा को मार देना है।"
दोहरी चाल
अर्जुन और नेहा ने राहत की सांस ली।
शायद अंकित अब उनके साथ था।
लेकिन तभी…
अंकित ने जेब से एक हार्ड ड्राइव निकाली और मेहरा को सौंप दी।
"ये लो सर।
यही वो सबूत हैं जिनके लिए आज रात इतना खेल खेला गया।"
नेहा का चेहरा फक पड़ गया।
"न-नहीं… अंकित! तुमने…"
अर्जुन ने गुस्से से मुट्ठी भींची,
"तुमने हमें धोखा दिया!"
अंकित ने ठंडी नज़र से अर्जुन की ओर देखा,
"नहीं अर्जुन।
ये सिर्फ़ धोखा नहीं, ये मेरी मजबूरी है।
क्योंकि सच और झूठ के बीच,
मैंने वो रास्ता चुना जो मुझे ज़िंदा रखेगा।"
पकड़े गए
मेहरा ने जोर से ठहाका लगाया।
"वाह अंकित!
तुमने आज वफ़ादारी का सबूत दिया है।"
दोनों गार्ड्स ने आगे बढ़कर अर्जुन और नेहा को पकड़ लिया।
नेहा ने संघर्ष किया,
लेकिन हथियारों के सामने उसकी ताकत बेकार थी।
मेहरा ने नेहा के चेहरे से नकाब हटाया—
"ओह… तो ये सरप्राइज था।
मेरे दुश्मन की बेटी मेरे घर में?
कमाल है!"
अर्जुन गरज उठा,
"अगर तूने इसे छुआ भी तो…"
मेहरा ने उसकी बात बीच में काट दी,
"तू क्या करेगा अर्जुन?
तेरे पास अब कुछ नहीं बचा।
ना सबूत, ना रास्ता।
अब खेल ख़त्म।"
नेहा का साहस
नेहा की आँखों में आँसू थे,
लेकिन उनमें आग भी थी।
उसने ज़ोर से कहा,
"खेल अभी खत्म नहीं हुआ मेहरा।
तू चाहे जितना सच छुपा ले,
पर सच की आग बुझती नहीं—
वो राख से भी निकलकर जिंदा हो जाती है।"
उसकी बात पर हॉल में कुछ मेहमानों ने एक-दूसरे की ओर देखा।
शायद पहली बार मेहरा की ताक़त पर किसी ने सवाल उठाया था।
अनजान मददगार
इसी तनाव के बीच,
अचानक हॉल की लाइट्स टिमटिमाने लगीं।
साउंड सिस्टम से तेज़ शोर गूंजा।
फिर एक आवाज़ आई—
"सावधान मेहरा।
तूने सोचा था खेल तेरे हाथ में है।
पर असली खिलाड़ी अभी सामने आया ही नहीं।"
सबकी आँखें ऊपर की ओर उठीं—
बालकनी पर एक नकाबपोश खड़ा था।
उसकी पहचान किसी को नहीं पता थी।
लेकिन उसने हाथ में वो असली हार्ड ड्राइव उठाई हुई थी,
जिसमें सबूत सुरक्षित थे।
अध्याय 13 – नक़ाबपोश रात (भाग 3)
बालकनी का रहस्य
लाइट्स अभी भी टिमटिमा रही थीं।
बालकनी पर खड़ा नक़ाबपोश शख्स सबकी नज़रों में था।
उसके हाथ में हार्ड ड्राइव चमक रही थी।
मेहरा की आँखें गुस्से से लाल हो गईं।
"कौन है तू?
और ये मेरे दुश्मनों का साथी कैसे बना?"
नक़ाबपोश ने हल्की हँसी छोड़ी।
"मेहरा, तूने ज़िंदगी भर दूसरों की पहचान चुराई,
लोगों को नक़ाब पहनने पर मजबूर किया।
आज तेरे सामने खड़ा हूँ…
तेरी असली पहचान उतारने के लिए।"
हॉल में हलचल
मेहमानों में कानाफूसी शुरू हो गई।
कई लोग पीछे हटने लगे,
जैसे उन्हें डर हो कि कहीं सच सामने आकर उनका नाम भी न उजागर कर दे।
नेहा ने धीमे से अर्जुन से कहा,
"ये कौन हो सकता है?
राघव तो बाहर है… फिर ये?"
अर्जुन ने आंखें सिकोड़ते हुए कहा,
"शायद वही है,
जो अब तक छुपकर हमारा साथ देता आया है।
पर ये कौन?"
मेहरा की चाल
मेहरा ने गार्ड्स को इशारा किया।
"पकड़ो इसे!
ये हार्ड ड्राइव अभी मेरे हाथ में होनी चाहिए।"
दो गार्ड्स सीढ़ियाँ चढ़कर बालकनी की ओर भागे।
लेकिन तभी नक़ाबपोश ने अपनी जेब से स्मोक ग्रेनेड निकाला और नीचे फेंक दिया।
धुआँ… हर तरफ़ धुआँ।
हॉल में अफरा-तफरी मच गई।
लोग खाँसने लगे,
कुछ दरवाज़े की ओर भागने लगे।
इसी अफरातफरी में अर्जुन ने नेहा का हाथ पकड़ा और फुसफुसाया—
"मौका है… चलो!"
अचानक पहचान
धुएँ के बीच नक़ाबपोश बालकनी से कूदकर सीधे हॉल के बीच आ खड़ा हुआ।
उसने नकाब हटाया…
और सबके सामने आया राघव!
नेहा और अर्जुन दोनों की आँखें चौड़ी हो गईं।
"राघव?!
लेकिन तुम तो बाहर थे!"
राघव ने मुस्कुराते हुए कहा,
"मैंने तुमसे कहा था अर्जुन—
पार्टी में अंदर का काम मैं करूँगा।
ये हार्ड ड्राइव नकली थी जो अंकित ने मेहरा को दी।
असल सबूत अब मेरे पास हैं।"
अंकित का सच
अंकित का चेहरा देखकर लगता था
मानो उसके सीने से कोई बोझ उतर गया हो।
उसने धीमे स्वर में कहा,
"मैंने जानबूझकर नकली ड्राइव दी थी।
ताकि मेहरा मुझ पर यक़ीन कर ले…
और राघव को असली ड्राइव निकालने का समय मिले।"
नेहा के होंठों से अनायास शब्द निकले—
"मतलब… तुमने हमें धोखा नहीं दिया?"
अंकित ने पहली बार नेहा की आँखों में देखकर कहा,
"नहीं नेहा।
तुम्हें खोने के डर से ही मैंने ये खेल खेला।
अगर सीधे मेहरा को चुनौती देता,
तो मैं जिंदा नहीं बचता।"
असली टकराव
मेहरा गरज उठा।
"तुम सब मुझे बेवकूफ बना रहे थे?
आज की रात…
तुम्हारी आख़िरी रात होगी।"
उसने पिस्तौल निकाली और सीधा राघव पर तान दी।
"ड्राइव दो… नहीं तो यहीं खून बहा दूँगा।"
अर्जुन तुरंत राघव के सामने खड़ा हो गया।
"पहले मुझे गोली मारनी होगी।"
नेहा ने साहस जुटाकर कहा,
"और उसके बाद मुझे।
मेहरा, तू सोचता है डर से हमें तोड़ देगा?
गलत सोच रहा है।"
अनपेक्षित मोड़
ठीक उसी वक़्त…
पार्टी के बाहर पुलिस की सायरन की आवाज़ गूंज उठी।
कई गार्ड बाहर भागे।
मेहमानों में हड़कंप मच गया।
दरवाज़ा तोड़कर स्पेशल टास्क फोर्स अंदर घुस आई।
उनके लीडर ने मेहरा की ओर बंदूक तानते हुए कहा—
"हथियार नीचे रखो मेहरा।
ये पार्टी अब यहीं खत्म होती है।"
मेहरा का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
"न-नहीं… ये कैसे हो सकता है?
किसने बुलाया पुलिस को?"
राघव ने धीमे स्वर में कहा,
"जिस सिस्टम को तू अजेय समझ रहा था,
उसी सिस्टम में हमने पहले ही अलर्ट डाल दिया था।
तेरी हर चाल का हिसाब अब क़ानून देगा।"
मेहरा की हार
गार्ड्स ने हथियार डाल दिए।
मेहरा गुस्से से काँप रहा था,
लेकिन अब उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा था।
अर्जुन ने उसकी ओर बढ़कर कहा—
"याद है तूने कहा था खेल खत्म?
हाँ, खेल खत्म हो चुका है…
लेकिन तेरे लिए।"
नेहा की आँखों में आँसू थे।
"ये सबूत मेरे पापा के लिए न्याय की पहली सीढ़ी है।
अब तू चाहे कुछ भी कर ले,
तेरा साम्राज्य ढह चुका है।"
रिश्तों की डोर
पुलिस मेहरा को पकड़कर ले जा रही थी।
हॉल धीरे-धीरे खाली हो रहा था।
नेहा ने अर्जुन की ओर देखा।
उसकी आँखों में राहत भी थी,
प्यार भी, और एक अजीब-सी थकान भी।
"अर्जुन… अगर तुम न होते तो मैं ये लड़ाई कभी नहीं जीत पाती।"
अर्जुन ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा,
"ये सिर्फ़ तुम्हारी नहीं, हमारी लड़ाई थी नेहा।
और अब… अब हमें एक नई शुरुआत करनी होगी।"
राघव पास आकर मुस्कुराया।
"और इस बार… बिना नक़ाब के।"
अध्याय 14 – परछाइयों का सौदा (भाग 1)
जेल की दीवारों के पीछे
बारिश से भीगी सुबह थी।
जेल के पुराने लोहे के गेट धीरे-धीरे खुले।
अंदर अंधेरे और नमी से भरे गलियारे में मेहरा बैठा था।
उसके चेहरे पर हार का कोई भाव नहीं था।
बल्कि उसकी मुस्कान और भी खतरनाक हो चुकी थी।
जेलर ने उसके सेल का ताला लगाया और कहा—
"अब तेरी दुनिया यहीं तक है, मेहरा।
बाहर तेरा खेल खत्म हो चुका है।"
मेहरा ने उसकी आँखों में देखकर धीमे स्वर में कहा—
"खेल कभी खत्म नहीं होता, जेलर।
खिलाड़ी बदल जाते हैं, लेकिन खेल… चलता रहता है।"
जेलर उसकी बात पर हँसकर चला गया।
लेकिन जाते-जाते मेहरा के कानों में किसी अनजानी आवाज़ की फुसफुसाहट गूँजी—
"सर… डील तैयार है।
बाहर अभी भी हमारे आदमी ज़िंदा हैं।"
मेहरा ने आँखें मूँद लीं और बुदबुदाया—
"तो खेल का अगला राउंड… शुरू हो चुका है।"
नई सुबह, नई उम्मीद
दूसरी ओर, शहर की एक ऊँची इमारत की छत पर
अर्जुन और नेहा बैठे थे।
सूरज की किरणें धुंध को चीरती हुई उनके चेहरों पर पड़ रही थीं।
नेहा ने गहरी सांस ली और कहा—
"मुझे लगता है जैसे मेरे पापा की आत्मा आज पहली बार चैन ले रही होगी।
उनके लिए न्याय की शुरुआत हुई है।"
अर्जुन ने उसकी ओर देखा,
"हाँ… लेकिन नेहा, हमें ये मत भूलना चाहिए
कि मेहरा अकेला नहीं था।
उसके पीछे और भी लोग हैं,
और जब तक हम उन्हें बेनकाब नहीं करेंगे,
ये लड़ाई अधूरी है।"
नेहा ने उसका हाथ थाम लिया।
"तो हम साथ लड़ेंगे अर्जुन।
अब चाहे कैसी भी परछाई सामने आए,
मैं पीछे नहीं हटूँगी।"
राघव की खोज
इसी बीच राघव ने लैपटॉप पर काम करते हुए कहा—
"मुझे कुछ अजीब मिला है।
मेहरा की फाइल्स में एक नाम बार-बार आ रहा है—
‘सिंडिकेट’।
ये कोई शख्स नहीं, बल्कि एक पूरा नेटवर्क है।"
अर्जुन ने भौंहें चढ़ाईं,
"मतलब… मेहरा तो सिर्फ़ मोहरा था?
असल ताक़त तो इसके पीछे कोई और है।"
राघव ने गंभीर आवाज़ में कहा—
"हाँ।
और जिस तरह ये सिंडिकेट काम करता है,
ये राजनीति, बिज़नेस और मीडिया—
तीनों में घुसा हुआ है।
अगर हमें सच में जीतना है,
तो इस नेटवर्क की जड़ तक पहुँचना होगा।"
नेहा की आँखों में डर झलक पड़ा।
"मतलब असली जंग तो अब शुरू हुई है?"
अर्जुन ने दृढ़ स्वर में कहा—
"हाँ… और ये जंग अब सिर्फ़ हमारे लिए नहीं,
पूरे शहर के लिए है।"
जेल से पहला वार
उसी रात, शहर की सबसे व्यस्त सड़क पर
एक बड़ा धमाका हुआ।
कई गाड़ियाँ जल उठीं,
लोग भागते-चिल्लाते नज़र आए।
टीवी चैनल्स पर ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही थी—
“शहर में बम धमाका… दर्जनों घायल…
सूत्रों के मुताबिक ये हमला किसी संगठित गिरोह ने किया है।”
राघव ने तुरंत सिस्टम पर अलर्ट चेक किया।
"ये सिंडिकेट का पहला वार है।
ये हमें सीधा संदेश दे रहे हैं—
कि खेल अभी खत्म नहीं हुआ।"
नेहा काँपते हुए बोली,
"लेकिन ये सब मेहरा जेल में रहते हुए कैसे हो सकता है?"
अर्जुन ने मेज पर मुक्का मारा।
"क्योंकि बाहर उसके लोग अभी भी आज़ाद हैं।
और सिंडिकेट उसकी रीढ़ है।
हमें जल्दी ही इसका सामना करना होगा।"
दिल की गहराइयाँ
रात को जब सब सो चुके थे,
अर्जुन और नेहा बालकनी पर खड़े थे।
चाँदनी उनकी परछाइयों को लंबा कर रही थी।
नेहा ने धीमी आवाज़ में कहा—
"अर्जुन, कभी डर नहीं लगता तुम्हें?
कि इस रास्ते में हम दोनों शायद कभी ज़िंदा न लौटें?"
अर्जुन कुछ पल चुप रहा,
फिर उसकी ओर मुड़कर कहा—
"डर तो लगता है नेहा।
पर अगर मैं डरकर भाग जाऊँ,
तो ज़िंदगी भर खुद को माफ़ नहीं कर पाऊँगा।"
उसने नेहा के चेहरे को हल्के से छुआ।
"और अगर तेरा हाथ मेरे हाथ में है,
तो मुझे कोई परछाई डरा नहीं सकती।"
नेहा की आँखों से आँसू बह निकले।
"वादा करो अर्जुन…
हम साथ रहेंगे।
चाहे दुनिया हमारे खिलाफ हो जाए।"
अर्जुन ने मुस्कुराकर कहा—
"वादा है।"
आगामी तूफ़ान
लेकिन जैसे ही ये पल खत्म हुआ,
राघव अंदर से भागता हुआ आया।
उसके चेहरे पर घबराहट थी।
"अर्जुन!
नेहा!
तुम्हें ये देखना होगा।"
उसने टीवी ऑन किया—
न्यूज़ रिपोर्टर चीख रही थी—
“सिंडिकेट का संदेश मिला है।
उन्होंने कहा है कि अगर मेहरा को छोड़ा नहीं गया,
तो अगला वार और भी खतरनाक होगा।
और उनके निशाने पर है…
अर्जुन सिंह और नेहा वर्मा।
कमरे में खामोशी छा गई।
नेहा ने अर्जुन की ओर देखा।
"मतलब अब… ये खेल सीधा हमारे खिलाफ है।"
अर्जुन ने आँखें बंद कीं और गहरी सांस ली।
"हाँ नेहा… अब हमें छिपना नहीं,
लड़ना होगा।
ये लड़ाई अब हमारी ज़िंदगी का मकसद बन चुकी है।"
अध्याय 14 – परछाइयों का सौदा (भाग 2)
रात का साया
रात का अंधेरा धीरे-धीरे शहर पर उतर आया था।
सड़कें सुनसान थीं, सिर्फ़ स्ट्रीट लाइट की पीली रोशनी बिखरी हुई थी।
कहीं दूर कुत्तों के भौंकने की आवाज़ गूँज रही थी।
अर्जुन, नेहा और राघव अपने छोटे से अपार्टमेंट में एक टेबल पर बैठे थे।
तीनों के चेहरों पर बेचैनी थी।
टीवी स्क्रीन पर अब भी सिंडिकेट का संदेश चमक रहा था—
“अर्जुन सिंह और नेहा वर्मा… तुम्हारा वक्त ख़त्म हो रहा है।”
नेहा ने घबराकर कहा—
"अगर ये लोग इतने ताक़तवर हैं, तो हम अकेले कैसे लड़ पाएंगे अर्जुन?"
अर्जुन ने उसकी ओर देखा,
उसकी आँखों में दृढ़ता थी—
"हम अकेले नहीं हैं नेहा।
सच हमेशा हमारा साथ देता है।
और अब वक्त आ गया है कि हम इस शहर की चुप्पी को तोड़ें।"
सिंडिकेट की पहली चाल
इसी बीच, शहर के दूसरे कोने में
एक आलीशान होटल की ऊपरी मंज़िल पर
कुछ लोग गोल मेज़ पर बैठे थे।
उनके चेहरों पर नक़ाब था।
कमरे में सिर्फ़ एक मंद लाल रोशनी जल रही थी।
बीच में बैठे एक आदमी ने भारी आवाज़ में कहा—
"मेहरा तो बस चेहरा था।
असल ताक़त हम हैं।
और अब अर्जुन और नेहा हमारे रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट हैं।"
दूसरे ने धीमे स्वर में जोड़ा—
"तो पहला वार सीधा उनके दिल पर होना चाहिए।
उन्हें ऐसा दर्द दो…
कि लड़ने से पहले ही टूट जाएँ।"
कमरे में एक और आवाज़ गूँजी—
"और याद रखो… ये खेल अब खून माँगता है।"
हमला
रात के दो बजे का समय था।
अर्जुन और नेहा अपने कमरे में थे,
राघव सिस्टम पर कुछ डाटा ट्रेस कर रहा था।
अचानक खिड़की के बाहर से एक हल्की सी आहट आई।
अर्जुन चौंककर उठा—
"राघव, लाइट्स बंद करो!"
जैसे ही लाइट्स बुझीं,
कमरे के बाहर गोलियों की बौछार होने लगी।
खिड़कियों के शीशे टूटकर बिखर गए।
नेहा चीख पड़ी,
अर्जुन ने उसे तुरंत नीचे झुका लिया।
"नेहा, झुको!"
राघव तेजी से एक बैकअप ड्राइव खींचकर बैग में डालने लगा।
"ये डेटा ही हमारी सबसे बड़ी ताक़त है।
अगर ये हाथ से निकल गया, तो सब खत्म!"
अर्जुन ने पास रखी लोहे की रॉड पकड़ ली और धीरे-धीरे दरवाज़े की ओर बढ़ा।
बाहर से नक़ाबपोश लोग भीतर घुसने की कोशिश कर रहे थे।
अचानक, एक ज़ोरदार धमाके के साथ दरवाज़ा टूट गया।
तीन नक़ाबपोश बंदूकें ताने अंदर घुस आए।
"हथियार नीचे रखो अर्जुन!"
उनमें से एक चीखा।
अर्जुन ने ठंडी हँसी के साथ कहा—
"तुम भूल गए…
मैं लड़ाई कभी बिना हथियार के नहीं हारता।"
और अगले ही पल वह रॉड घुमाकर सबसे आगे वाले पर टूट पड़ा।
कमरा गोलियों और चीखों से भर गया।
राघव का रहस्य
लड़ाई के बीच अचानक नेहा ने देखा—
राघव एक नक़ाबपोश पर बंदूक ताने खड़ा था।
लेकिन उसकी आँखों में अजीब सा भाव था—
मानो वह उन्हें पहचानता हो।
"राघव… ये क्या कर रहे हो?"
नेहा चीख उठी।
राघव ने काँपती आवाज़ में कहा—
"नेहा… अर्जुन…
मुझे सच बताना होगा।
मैं सिर्फ़ तुम्हारा साथी नहीं हूँ।
मैं कभी… सिंडिकेट का हिस्सा था।"
कमरा अचानक ठहर गया।
अर्जुन का चेहरा सख़्त हो गया।
"मतलब… तुम शुरू से जानते थे?"
राघव की आँखों में आँसू थे।
"हाँ…
मैं उनका टेक्निकल हेड था।
लेकिन जब मैंने देखा कि वे निर्दोषों का खून बहा रहे हैं,
मैंने उन्हें छोड़ दिया।
तब से मैं भाग रहा हूँ।
तुम्हें सच इसलिए नहीं बताया…
क्योंकि मुझे डर था कि तुम मुझ पर भरोसा नहीं करोगे।"
नेहा की आँखों में सदमा था।
"तो ये सब हम तक कैसे पहुँचे?
ये सारे हमले… क्या तुम्हारी वजह से हैं?"
राघव चुप रहा।
उसकी खामोशी ही उसके गुनाह को बयां कर रही थी।
अर्जुन का फैसला
अर्जुन कुछ पल तक चुप खड़ा रहा।
फिर उसने धीरे से कहा—
"राघव…
तुम्हारा सच मुझे तोड़ रहा है।
लेकिन अगर तुमने सच में उनका साथ छोड़ दिया है,
तो अब तुम्हें अपना गुनाह मिटाने का मौका मिलेगा।"
राघव ने काँपते हुए कहा—
"मैं… मैं तुम्हारे साथ हूँ अर्जुन।
मैं अपनी आख़िरी सांस तक इस सिंडिकेट के खिलाफ लड़ूँगा।"
नेहा अब भी चुप थी।
उसके आँसुओं में गुस्सा और दर्द दोनों थे।
अर्जुन ने उसकी ओर देखा और कहा—
"नेहा, अभी हमारे पास रोने का वक्त नहीं है।
अगर हमें जिंदा रहना है,
तो सिंडिकेट को खत्म करना होगा।"
सिंडिकेट का अगला संदेश
लड़ाई ख़त्म होने के बाद वे सब अपार्टमेंट से बाहर निकले।
लेकिन जैसे ही उन्होंने कार स्टार्ट की,
राघव के लैपटॉप पर एक नया मैसेज उभरा।
“तुम्हारे लिए खेल अब और मुश्किल होने वाला है।
अर्जुन, नेहा, राघव…
अगला वार दिल पर होगा।
तुम्हें वो खोना पड़ेगा…
जिसे बचाने के लिए तुम लड़ रहे हो।”
नेहा का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
"ये… ये मेरे पापा की फ़ाइल्स की तरफ इशारा कर रहे हैं।
अगर वो डेटा खत्म हो गया,
तो सब बेकार हो जाएगा!"
अर्जुन ने स्टीयरिंग कसकर पकड़ा।
"तो हमें वक्त से पहले उन्हें मात देनी होगी।
वरना ये लड़ाई हमारी जान ही नहीं…
हमारा मकसद भी छीन लेगी।"
अध्याय 14 – परछाइयों का सौदा (भाग 3)
भागती हुई ज़िंदगी
कार शहर की सुनसान सड़कों पर दौड़ रही थी।
बारिश तेज़ हो चुकी थी।
अर्जुन स्टीयरिंग कसकर पकड़े हुए था,
नेहा खिड़की से बाहर देख रही थी—
बारिश की हर बूँद उसे किसी टूटे हुए वादे की तरह चुभ रही थी।
पीछे की सीट पर राघव चुप बैठा था।
उसकी आँखों में शर्म और अपराधबोध का साया गहरा होता जा रहा था।
"अर्जुन…", नेहा ने धीमी आवाज़ में कहा,
"क्या हम सचमुच जीत पाएंगे?
कभी लगता है जैसे ये लड़ाई हमारी ताक़त से बड़ी है।"
अर्जुन ने उसकी ओर पलटकर देखा नहीं,
लेकिन उसके शब्दों में आग थी—
"नेहा, सच कभी हारता नहीं।
हाँ, उसे जीतने में वक्त लगता है…
और वो वक्त शायद हमें अपनी ज़िंदगी से चुकाना पड़े।"
सिंडिकेट की गूंज
राघव का फोन अचानक बीप करने लगा।
उसने देखा—एक एन्क्रिप्टेड मैसेज आया था।
“अगर सच में अर्जुन को बचाना चाहते हो,
तो अकेले मिलो।
लोकेशन भेजी गई है।”
राघव का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
उसके माथे पर पसीना छलक आया।
नेहा ने मैसेज देख लिया।
"ये क्या है राघव?
किसने भेजा है ये?"
राघव बुरी तरह घबरा गया।
"ये… ये उनका ट्रैप भी हो सकता है।
या फिर… वो लोग मुझे वापिस अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रहे हैं।"
अर्जुन ने कार रोक दी और उसकी ओर घूरकर कहा—
"राघव, अब कोई आधा सच नहीं।
जो भी है, सब बता।
क्योंकि इस बार अगर तूने झूठ बोला,
तो मेरी बंदूक तुझ पर भी उठेगी।"
राघव ने काँपते हुए गहरी सांस ली—
"ये मैसेज उसी से आया है…
जो सिंडिकेट का असली मास्टरमाइंड है।"
नेहा और अर्जुन दोनों चौंक पड़े।
"मतलब…?"
राघव ने धीरे से कहा—
"उसका नाम है… कबीर राय।
वो पहले पुलिस अधिकारी था।
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ता था।
लेकिन जब सिस्टम ने उसे तोड़ा,
तो उसने सिस्टम ही बेच दिया।
अब वही सिंडिकेट का चेहरा है।"
नेहा का धोखा
कुछ घंटों बाद वे तीनों उस लोकेशन पर पहुँचे।
एक पुरानी फैक्ट्री, अंधेरी और वीरान।
चारों ओर बस जंग लगे लोहे और टूटी खिड़कियाँ थीं।
जैसे ही वे अंदर गए,
सामने से धीमी ताली बजती आवाज़ आई।
"वाह… अर्जुन सिंह।
तू वही है न जिसने मेहरा को जेल भेजा?"
एक लंबा आदमी अंधेरे से बाहर निकला।
उसकी आँखों में ठंडी आग थी।
चेहरे पर हल्की मुस्कान,
मानो हर चाल पहले से उसके पास हो।
"मैं हूँ कबीर राय।
और अब… तुम्हारा असली इम्तिहान शुरू होगा।"
अर्जुन ने गुस्से से कहा—
"तू चाहे जितना बड़ा मास्टरमाइंड हो,
तेरा खेल अब खत्म होगा।"
कबीर हँस पड़ा।
"खेल खत्म?
अभी तो खेल शुरू हुआ है अर्जुन।
और पहला कार्ड मैंने पहले ही खेल दिया है।"
उसने उँगली चटकाई।
और तभी…
फैक्ट्री के दूसरे दरवाज़े से नेहा की एक दोस्त—प्रियंका अंदर आई।
नेहा हैरान रह गई।
"प्रियंका… तू यहाँ?"
लेकिन प्रियंका की आँखें खाली थीं।
वह सीधे कबीर के पास खड़ी हो गई।
कबीर ने कहा—
"हाँ नेहा,
तुझे धोखा देने के लिए मुझे बाहर से किसी की ज़रूरत नहीं थी।
तेरी अपनी सबसे करीबी दोस्त…
अब मेरी है।"
नेहा की आँखों में आँसू छलक पड़े।
"तूने… तूने ये क्यों किया प्रियंका?"
प्रियंका ने ठंडी आवाज़ में कहा—
"क्योंकि सच का कोई मतलब नहीं नेहा।
पैसा और ताक़त ही सब कुछ है।
और सिंडिकेट वो ताक़त है,
जिसके सामने अर्जुन जैसे लोग सिर्फ़ खिलौने हैं।"
अर्जुन का अतीत
नेहा ज़मीन पर बैठकर रो पड़ी।
अर्जुन का खून खौल रहा था।
लेकिन तभी कबीर ने उसकी ओर देखा और कहा—
"अर्जुन,
क्या तुझे सच में लगता है कि तू बाकी सब से अलग है?
तू भी तो हमारे ही जैसा है।"
अर्जुन ने भौंहें चढ़ाईं—
"क्या कहना चाहता है तू?"
कबीर मुस्कुराया।
"तेरे अतीत का सच जानना चाहता है ये शहर?
तो सुनो…
अर्जुन सिंह का बाप…
कभी हमारे सिंडिकेट का पहला आदमी था।"
अर्जुन के कानों में ये शब्द हथौड़े की तरह गूँजे।
"झूठ… ये झूठ है!"
कबीर ने एक पुरानी फाइल उसकी ओर फेंक दी।
उसमें अर्जुन के पिता की तस्वीरें थीं—
कई पुराने अपराधों से जुड़ी फाइलों में उनका नाम।
"तेरे पापा ही इस खेल की नींव थे।
और तू सोचता है कि तू हमें मिटा देगा?
तू तो उसी मिट्टी का बना है अर्जुन।"
अर्जुन की आँखों में आँसू भर आए।
वो फाइल ज़मीन पर गिर गई।
नेहा ने काँपते हाथों से अर्जुन का हाथ थामने की कोशिश की,
लेकिन अर्जुन पीछे हट गया।
"नहीं नेहा…
मैं… मैं उनका बेटा हूँ।
मतलब… मैं भी उसी खून से बना हूँ।"
टूटता रिश्ता
नेहा ने रोते हुए कहा—
"अर्जुन, खून कभी इंसान को परिभाषित नहीं करता।
तेरे कर्म तुझे परिभाषित करते हैं।
तू वही है जिसने मेरे पापा को इंसाफ़ दिलाने की कोशिश की।
तू वही है जिसने मेरे लिए मौत से लड़ाई की।
मत भूल… तू अर्जुन है।"
लेकिन अर्जुन चुप था।
उसका दिल टूट चुका था।
कबीर की हँसी गूँज रही थी—
"देखा?
अब तेरी अपनी पहचान ही तेरे खिलाफ है।
अब ये खेल मैं जीत चुका हूँ।"
अंतिम दृश्य (भाग 3 का क्लिफहैंगर)
अचानक फैक्ट्री की छत से एक भारी आवाज़ आई।
धड़ाम!
सभी ने ऊपर देखा।
छत का हिस्सा टूटकर गिरने लगा।
धुएँ और मलबे के बीच सब भागने लगे।
नेहा अर्जुन का हाथ पकड़ने दौड़ी,
लेकिन अर्जुन वहीं खड़ा रह गया—
उसकी आँखें अब भी फाइल पर टिकी थीं।
"अर्जुन!!"
नेहा चीख रही थी।
लेकिन अर्जुन का मन भीतर से टूट चुका था।
उसकी आवाज़ खोखली थी—
"शायद कबीर सही कह रहा है नेहा…
मैं उसी खून से बना हूँ।"
और अगली ही पल
धुआँ सबकुछ ढक गया।
अध्याय 14 – परछाइयों का सौदा (भाग 4)
धुएँ और मलबे के बीच
फैक्ट्री का धुआँ सबकुछ ढक चुका था।
धातु की चरमराहट और गिरते पत्थरों की आवाज़ें गूँज रही थीं।
नेहा खाँसते-खाँसते अर्जुन की ओर बढ़ रही थी—
"अर्जुन! चलो… हमें यहाँ से निकलना होगा!"
लेकिन अर्जुन वहीं खड़ा था,
फाइलें उसके पैरों में बिखरी थीं,
उसकी आँखें खोखली हो चुकी थीं।
"नेहा… मैं उनका बेटा हूँ।
मतलब… मैं भी गुनाह की ही औलाद हूँ।"
नेहा ने उसके कंधे पकड़कर जोर से झकझोरा—
"नहीं अर्जुन!
तेरा खून तुझे परिभाषित नहीं करता।
तेरे कर्म तुझे परिभाषित करते हैं।
अगर तू आज हार मान गया,
तो ये सिंडिकेट सच में जीत जाएगा।"
अर्जुन की आँखों में आँसू थे,
लेकिन नेहा की आवाज़ में इतनी मजबूती थी
कि उसका दिल काँप उठा।
कबीर का अगला वार
धुएँ से घिरी छाया में कबीर की ठंडी हँसी गूँजी।
"वाह अर्जुन…
इतना जल्दी टूट गया तू?
तेरे बाप को देखकर मैंने ही तुझे इस खेल में खींचा था।
सोचा था तू मजबूत निकलेगा,
पर तू भी उनकी तरह कमजोर ही निकला।"
उसने इशारा किया।
नक़ाबपोश लोग आगे बढ़े और राघव को पकड़ लिया।
"अब तेरे इस दोस्त की बारी है।
या तो तू हमारे साथ जुड़ जा,
या फिर तेरे सामने ये मारा जाएगा।"
राघव चिल्लाया—
"अर्जुन, मत झुकना!
अगर तुझे मेरी जान लेनी पड़े तो ले लेना,
पर इन कमीने लोगों से कभी मत जुड़ना!"
नेहा की आँखों में आँसू थे,
वह चीख पड़ी—
"अर्जुन! सोचो…
अगर तू झुक गया,
तो मेरे पापा का बलिदान व्यर्थ हो जाएगा!"
राघव का इम्तिहान
अचानक राघव ने ज़ोरदार धक्का दिया
और नक़ाबपोशों की पकड़ से निकल आया।
उसने एक लोहे की छड़ उठाई
और पूरी ताक़त से एक हमलावर पर टूट पड़ा।
"मैंने ज़िंदगी में बहुत धोखे किए हैं,
पर अब और नहीं।
आज से मैं सिर्फ़ तुम्हारे साथ हूँ अर्जुन!"
राघव का ये जुनून देखकर अर्जुन की आँखों में चमक लौटी।
उसने नेहा का हाथ थामा
और जोर से बोला—
"नहीं! मैं कभी अपने बाप का साया नहीं बनूँगा।
मैं अर्जुन हूँ…
और मेरी लड़ाई सिंडिकेट से है!"
दिल और दर्द
लेकिन कबीर शांत खड़ा मुस्कुरा रहा था।
उसने धीरे से कहा—
"ठीक है अर्जुन,
देखते हैं तेरा ये हौंसला कब तक रहता है।
क्योंकि अगला वार तेरे दिल पर होगा।"
नेहा ने अर्जुन की ओर देखा—
"इसका मतलब क्या है?"
कबीर ने हँसते हुए कहा—
"मतलब… जो तुझे सबसे प्यारा है,
मैं उसे तेरे खिलाफ इस्तेमाल करूँगा।"
नेहा काँप गई।
"मतलब… मैं?"
कबीर ने कुछ नहीं कहा।
उसकी चुप्पी ही उसकी साज़िश का सबूत थी।
भागते कदम
धुआँ और मलबा बढ़ता जा रहा था।
अर्जुन, नेहा और राघव ने मिलकर नक़ाबपोशों से भिड़ते हुए
किसी तरह फैक्ट्री से बाहर का रास्ता निकाला।
बाहर बारिश और तूफ़ान था।
तीनों की साँसें तेज़ थीं।
नेहा ने थकी आवाज़ में कहा—
"हम बच तो गए अर्जुन…
लेकिन ये खेल बहुत बड़ा है।
कबीर हमसे हमेशा एक कदम आगे है।"
अर्जुन ने गहरी सांस ली और कहा—
"तो हमें उसके खेल से भी बड़ा खेल खेलना होगा।
अब वक्त आ गया है
कि हम इस सिंडिकेट की जड़ तक जाएँ।"
नेहा का संकल्प
उस रात, जब वे एक सुरक्षित ठिकाने पर पहुँचे,
नेहा अकेले बालकनी में खड़ी थी।
उसकी आँखें आकाश की ओर थीं।
बारिश थम चुकी थी,
लेकिन हवा अब भी भारी थी।
"पापा…
मैं वादा करती हूँ,
मैं इस बार हार नहीं मानूँगी।
कबीर को उसके घुटनों पर लाऊँगी।
और अगर इसके लिए अपनी जान भी देनी पड़ी,
तो मैं पीछे नहीं हटूँगी।"
पीछे से अर्जुन आया।
उसने नेहा का हाथ थामा।
"नेहा, तू अकेली नहीं है।
तेरा वादा अब मेरा भी है।"
राघव भी पास आया।
"और मेरा भी।
ये मेरी प्रायश्चित की राह है।"
तीनों ने एक-दूसरे की ओर देखा।
उनकी आँखों में आँसू थे,
लेकिन दिल में एक नई आग जल चुकी थी।
क्लिफहैंगर
उसी वक्त, टीवी स्क्रीन पर एक और खबर चमकी।
“सिंडिकेट ने एलान किया है कि अगले 48 घंटे में
अगर मेहरा को जेल से रिहा नहीं किया गया,
तो पूरा शहर खून से लाल कर दिया जाएगा।”
नेहा का दिल जोर से धड़कने लगा।
"मतलब… अब ये सिर्फ़ हमारी लड़ाई नहीं रही अर्जुन।
ये पूरे शहर की जंग है।"
अर्जुन ने गहरी सांस ली।
"हाँ नेहा…
और हमें 48 घंटे में इस खेल को पलटना होगा।"
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